Wednesday, October 28, 2015

सच है मैं अपने यार को समझता हूँ..


सच है मैं अपने यार को समझता हूँ..
उसके हर बात में छिपे हुए प्यार को समझता हूँ..

समझता हूँ कैसी होती है बेचैनी,
मैं अपने यार के इंतज़ार को समझता हूँ..

उसकी की हुयी नादानियों को समझता हूँ..
उसकी की हुयी मेहरबानियों को समझता हूँ..

समझता हूँ उसकी खिलखिलाती हंसी को,
हाँ मैं उसके हँसते खेलते संसार को समझता हूँ..
सच है मैं अपने यार को समझता हूँ..
उसके हर बात में छिपे हुए प्यार को समझता हूँ..

_._._स्वरचित_._._

Tuesday, October 27, 2015

इश्क का रंग सफेद by श्रद्धा_._

इश्क का  रंग सफेद :-

इश्क का रंग बिल्कुल सफेद
जो रंग तो चढने के बाद आता है...
कहीं फीका होता है कहीं निखार लाता है...

मोहब्बत सबको रास नही आती,
हर किसी को अंजाम नही मिलता...
प्यार नसीब वालों को मिलता है,
सबको वफा का मकाम नही मिलता...

दिल की दहलीज लांघकर खुद
को इससे जोड़ लेते हैं ...
कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मोहब्बत
के लिये मोहब्बत को ही छोड़ देते हैं...

हर प्रेम से परे है इसकी दास्तां
इसमे छिपी गहराई...
दिल की तलहटी में छलकती परछाई ....

तन्हाई , बेवफाई , रुसवाई का
किस्सा...
मुकम्मल मोहब्बत का अहम
हिस्सा ...

रूह खामोश हो जाती है सांसे
थमने लगती है...
जब ये अपने अंदाज मे बीते
संसमरनो के पन्ने पलटती है...

ये पीछा नही छोड़ती इसने
वारिफ्तगी की दुनिया भुलाई...
लाख मांगोगे रहम करोगे बख्स देने की
उम्मीद पर ये खुद से तुझे ना देगी जुदाई...

ना जाने क्यों ये दिल किसी को
प्यार करता है ...
इस गुस्ताखी के बाद स्वयं वेदना
भी सहता है ...

आती है इसके हिस्से में सिर्फ तन्हाई और तन्हाई ...

आंखें भी शिकायत करती हैं
हमसे ही की लोग मुझे इतना
क्यूं रुलाते हैं ...
प्यार वो करते हैं तो उनकी गलती है ना,
मुझे आंसुओ के सागर में क्यूं डुबाते हैं...

तू मत कर रे पागल किसी को
इतना याद...
नही तेरी चाहत की दुनिया हो
जायेगी बर्बाद...

फिर मैं भी लोगों से बहुत दूर चला जाऊंगी..
लोग बुलायेंगे मुझे और तड़पेंगे मेरे लिये भी
पर मैं फिर कभी लौट कर नही आऊंगी...

तब दुनिया वाले किसी को याद
करके रो भी नही पायेंगे...
यदि आंसू भी ना निकल पाये
उनकी आंखों से तो वे घुट घुट
कर मर जायेंगे...

रब गर कोई मोहब्बत करे तो
उसको उसका मकाम देना...
खुशियों का तोहफा प्यार का
पैगाम देना....
सारी दुनिया सारा समां ये सुन्दर जहान देना...

मोहब्बत भी तेरा ही दिया हुआ
एक प्यारा सा एहसास है...
इस दुनिया के मेले में किसी अपने की आस है...

वाकई बहुत प्यारे हैं मोहब्बत के
अफसाने...
हमे ज्यादा नही पता जिसने
किया है वो ही जाने...

दुआ है खुदा से हर बंदे को
उसका प्यार मिले...
मिले खुशियों भरा जीवन सपनो
का संसार मिले...

_._बहन श्रद्धा की कलम से_._





अजीब सी उलझन है अनकही सी उदासी है...by श्रद्धा

ये काला आसमां ये बहती हवायें ये मचलती फिजायें ...
ये बहकती सी शाम बडी हलचल मचाये...
इसे देख दिल पागल विचलित सा हो रहा,
राहों में भटकता हुआ बंजारा बनाये...

क्या शाम है क्या मौसम है क्या अजब के नजारे हैं...
लग रहा है ऐसा सारी दुनिया खुश अपने आप में,
और हम दुनिया में अकेले हैं जो अपने आप से हारे हैं...

अजीब सी उलझन है अनकही सी उदासी है...
हम जिन्दगी की जंग के असफल प्रत्याशी हैं...

लग रहा है ऐसे जिन्दगी की दौड़ में...
परिस्थितियों के सामने लड़ने की होड़ में...

ख्वाहिशें रह गयी अधूरी अरमानों ने दम तोड़ दिया ...
तुझे एहसान ना करना पडे मुझ पर
जा तेरी खुशी के लिये मैने सपने देखना छोड़ दिया ..

बहन श्रद्धा की कलम से___

Sunday, October 11, 2015

बेटियां शीतल हवा होती हैं___

पहला दृश्य --

एक कवि नदी के किनारे खड़ा था !
तभी वहाँ से एक लड़की का शव नदी
में तैरता हुआ जा रहा था तो तभी
कवि ने उस शव से पूछा ----

कौन हो तुम ओ सुकुमारी,
बह रही नदियां के जल में ?
कोई तो होगा तेरा अपना,
मानव निर्मित इस भू-तल मे !
किस घर की तुम बेटी हो,
किस क्यारी की कली हो तुम ?
किसने तुमको छला है बोलो,
क्यों दुनिया छोड़ चली हो तुम ?
किसके नाम की मेंहदी बोलो,
हांथो पर रची है तेरे ?
बोलो किसके नाम की बिंदिया,
मांथे पर लगी है तेरे ?
लगती हो तुम राजकुमारी,
या देव लोक से आई हो ?
उपमा रहित ये रूप तुम्हारा,
ये रूप कहाँ से लायी हो?

दूसरा दृश्य----

कवि की बाते सुनकर लड़की की
आत्मा बोलती है.....

कवी राज मुझ को क्षमा करो,
गरीब पिता की बेटी हुँ !
इसलिये मृत मीन की भांती,
जल धारा पर लेटी हुँ !
रूप रंग और सुन्दरता ही,
मेरी पहचान बताते है !
कंगन,चूड़ी,बिंदी,मेंहदी,
सुहागन मुझे बनाते है !
पित के सुख को सुख समझा,
पित के दुख में दुखी थी मैं !
जीवन के इस तन्हा पथ पर,
पति के संग चली थी मैं !
पति को मेने दीपक समझा,
उसकी लौ में जली थी मैं !
माता-पिता का साथ छोड
उसके रंग में ढली थी मैं !
पर वो निकला सौदागर ,
लगा दिया मेरा भी मोल !
दौलत और दहेज़ की खातिर
पिला दिया जल में विष घोल !
दुनिया रुपी इस उपवन में,
छोटी सी एक कली थी मैं !
जिस को माली समझा ,
उसी के द्वारा छली थी मैं !
इश्वर से अब न्याय मांगने,
शव शैय्या पर पड़ी हूँ मैं !
दहेज़ की लोभी इस संसार मैं,
दहेज़ की भेंट छड़ी हूँ में !
दहेज़ की भेंट चडी हूँ मैं !!
.....................

बेटियां शीतल हवा होती है।।

।।इन्हें बचा कर रखें।।


Sunday, September 27, 2015

अनकहा, अनसुना, अनजाना प्रेम होना चाहिए...



जीवन साथी का प्रेम होना चाहिए जीवन में...
इसमें एक अलग अपनत्व का एहसास होता है...
अपनों का प्रेम तो अपना होता ही है...
गैरों का भी प्रेम होना चाहिए...
एक अलग सूकून...
एक अलग चाह...
एक अलग ख़ुशी होनी चाहिए...
इस जीवन में ऐसा बहुत कुछ है 
जो ये बावरा मन अपनों से नहीं कह पाता...
लेकिन...
एक गैर जब अपना हो जाता है...
ये उससे कह जाता है...
ये एक अजीब अलग और अनोखे 
प्रेम का एहसास होना चाहिए...
अँधेरे में एक अलग सा रोशनी देने वाला 
प्रेम होना चाहिए...
बिना इस प्रेम के जीवन अधूरा सा लग रहा है...
ठगा हुआ सा लगने लगा है...
मन बावरा सा और उलझा हुआ सा लगता है...
कोई तो चाहिए...
जो अन्तर्मन को बिना कुछ कहे समझ सके...
जिसे कुछ ना कहना पड़े...
जो खुद ही सब कुछ कहती रहे...
जिसके बिना सूकून ही न रहे...
चैन ना रहे...
जिसके लिए जीने की एक अलग चाह रहे...
"अधूरी" सी जिंदगी में "पूरा" सा कोई तो चाहिए...
अनकही...अनसुनी...अनजानी...
कोई तो चाहिए इस मन को...
जो हर तकलीफ को बोलने से पहले मन को पढ़ ले और कह दे...
...
...

..

आपका अपना अकेला राज



Friday, August 21, 2015

---दहेज़ और समाज---

---दहेज़ और समाज---

समाज में अगर आप दहेज़ लेंगे
तभी आपकी इज्जत बनती है,,

अगर दहेज़ नहीं लिए तो समाज
क्या कहेगा.???

और खासकर ये वही समाज
होता है जो भूखे रहने पर गरीब
को पानी नहीं देता है,,,

आक थू ऐसे समाज के
रखवालों पर,,,

दहेज़ लो तो ही मुह दिखाने
लायक हो... नहीं तो कहेंगे
तुम्हारी औकात नहीं है दहेज़
लेने की,,

कुछ सम्माननियोँ का कहना है
दहेज उन्हें ही मिलता है जो
उसके लायक हो,,,

अरे मैं कहता हूँ दहेज़ के लायक
तो सिर्फ भिखमंगे माँ बाप होते
हैं जो चन्द रुपयों के लिए खुद
को भी बेंच दे और ये तो बस बेटे
की बात है,,,,

अरे ढोंगियों शर्म करो,,,

एक पैसे की औकात नहीं और
दहेज़ चाहिए लाख रुपये की,,

गाडी चाहिए भले ही लाइसेंस
ना हो, भले ही पेट्रोल भराने की
औकात न हो,,

चैन चाहिए भले ही एक ग्राम
सोना की औकात न हो,,,

मांगेंगे चार लाख जैसे ज़िन्दगी
भर उसी से खाएंगे,,,

अरे भिखारियों औकात है तो
खुद के पैसे से बनाओ सब कुछ,,,

मेरे कुछ बड़े बुजुर्ग लोग मुझे
कन्वेंस करते हैं और कहते हैं
बेटा तुम्हारे बदलने से ये दहेज़-प्रथा
नहीं बदलने वाली है तुम अकेले
क्या कर लोगे,,
कुछ नहीं होता अकेले से...

ऐसे ही थोड़े दिन पहले एक मित्र
का कॉल आया,,,

अरे राज भाई कैसे हो..?
कहाँ हो भाई भूल गए एकदम
से...
बड़े आदमी बन गए तो हमें भूल
ही गए...

मैं मुस्कुराते हुए जवाब दिया
अरे नहीं भाई ऐसा कुछ नहीं है...

फिर दोस्त ने कहाँ सुना है
शादी के लिए लड़की देखे हो.??

मैंने कहा हाँ भाई देखा हूँ...

तो रिप्लाई आया यार ये भी पता
चला की लड़की कुछ ख़ास नहीं है...

मैंने कहा यार ये गलत बात है
और मेरे इतना कहते ही उधर
से दोस्त बोला कोई बात नहीं
यार डिमांड बढ़ा दे दहेज़ की
ज्यादा पैसा मांग ले और कर
ले शादी,,,

अब आप पैसे न लो तो आपमें
कमी है...

अरे थू है ऐसे लोगों पर...

मैं राज उपाध्याय चैलेन्ज के
साथ कहता हूँ बिना दहेज़ के
शादी करो अगर सर फक्र से
ऊंचा नहीं हुआ तो ज़िन्दगी भर
गुलामी करूँगा,,
लेकिन क्या करोगे भिखमंगो
वाली भूंख तो खुद में ही हैं और
झमेला समाज के नाम पर,,,,

ये सारी बातें स्पेशल्ली आज के
कुछ बुजुर्ग पर जो एक किलोमीटर
की लंबी जीभ निकाले मुह खोले
खड़े रहते हैं,,,
दुनिया की सारी भूंख इन बुजुर्गों की ही है,,,

अब हम इतना बोले हैं तो
हमको इ मुहर लग जाएगा कि
हम बुजुर्गों का सम्मान नहीं
करना जानते हमारे माता-पिता
ने हमें कुछ सिखाया नहीं,,

तो भईया सीधा सीधा बात है
मैं ऐसे बुजुर्गो का सम्मान नहीं
कर सकता बल्कि सामने आये
तो दो बात सूना जरूर दूंगा...

राज उपाध्याय

Saturday, August 1, 2015

आज सुबह का सूरज हमको गौरव का प्रतिमान लगा,

आज सुबह का सूरज हमको गौरव का प्रतिमान लगा,
किरणों में थी शौर्य ऊष्मा,जागा हिंदुस्तान लगा,

बाईस वर्षों की पीड़ा को आखिर मिली दवाई है,
फांसी पर याकूब चढ़ा है,भारत माँ मुस्काई है,

लेकिन सारे घटनाक्रम पर जब नज़रे दौड़ाता हूँ,
मन झुंझला जाता हैं मैं भी अंदर तक हिल जाता हूँ,

देखो तो ये चपल मीडिया,क्या क्या नही दिखाती है,
आतंकी की हर हरकत को ब्रेकिंग न्यूज़ बताती है,

कब सोया याकूब?नाश्ता उसने कब स्वीकार किया,
कब कुरान को पढ़ने बैठा,कब कैसा व्यवहार किया,

फांसी के पहले का आलम कुछ ऐसे दिखलाया है,
जैसे कोई लाल भगत सिंह फांसी चढ़ने आया है,

शर्म करो ए बी पी न्यूज़,अब तक मन क्या भरा नही?
उन विस्फोटों में कोई भी सगा तुम्हारा मरा नही,

सबसे तेज़ खबर वालों तुम भी ज़ख्मों से जुड़ जाते,
अगर तुम्हारे अपनों के भी वहां चीथड़े उड़ जाते,

विस्फोटों के पीड़ित परिवारों को क्यों बिसराया था,
आतंकी के खानदान पर ही क्यों दिल भर आया था,

भूल शहादत, सब दहशत पर नर्म दिखाई देते हैं,
चैनल वाले छटे हुए बेशर्म दिखाई देते हैं,

भूषण सा खरदूषण रावण की माफ़ी को आया था,
आधी रात कई काले कोटों ने शोर मचाया था,

गद्दारों की नही चली भारत का मान बचाना था,
फांसी पर पापी लटकाकर नया सवेरा लाना था,

पर मन कहे, सारे बवाल निपटा देते,
जितने थे हमदर्द उन्हें भी फाँसी पर लटका देते।

Wednesday, July 29, 2015

दरिंदे आतंकियों के लिए...

याकूब स्पेशल

मुझे लगता है फांसी की
सज़ा महज एक छोटी सजा है
ऐसे दरिंदे आतंकियों के लिए...

मेरा मानना है कि ऐसे लोगों को
एक साल तक खूब सरिया लाल
करके दागा(जलाया) जाए फिर
एक एक अंग काटा जाए
और नमक मिर्च लगाया जाए
फिर उसे किसी नुकीले तार से
उस पर रगड़ा जाये तब थोड़ा
सही सज़ा मानी जायेगी...

और हाँ एक अंग काट कर उस पर
लाल मिर्च डाला जाए और दस
लात भी मार जाए ऐसे लोगों को...

लास्ट दिन धीरे धीरे इनका गला
रेता जाए और उस पर कुछ जहरीला
पदार्थ डाला जाए और फिर
बीच चौराहे पर फांसी दी जाए...

आतंकी हमले में मारे गए सभी
देशवाशियों को सच्ची श्रद्धांजलि
कल सुबह सात बजे।

जय हिन्द! जय भारत!

राज___

Tuesday, July 28, 2015

हे "कलाम" देख, आज देश पूरा रो रहा,,

हश्र देख इंसा का मन को कुछ हो रहा,,
हे "कलाम" देख, आज देश पूरा रो रहा,,

आपने किया है जो,
ना कोई करेगा वो,,
देके इंसानियत को, दूर क्यों हो रहा..
हे "कलाम" देख, आज देश पूरा रो रहा..

बनाके मिसाइल विश्व में स्थान दिया,,
इस भारत का सारे जगत में है नाम किया,,
मन बहुत चिंतित है नयन खुद भिगो रहा,,
हे "कलाम" देख, आज देश पूरा रो रहा,,

देके देश को खुशियाँ, गहरी नींद सो रहा""
हे "कलाम" देख, आज देश पूरा रो रहा,,

"श्रद्धांजलि""

स्वरचित:- राज

"ओये चलती क्या साथ में"..

एक लड़की अकेली प्लेटफार्म से जा रही है..
तभी अचानक एक आवाज आती है..

"ओये चलती क्या साथ में"..

दरअसल वाकया आज सुबह का है...
मैं ट्रेन में था एक लड़का उजड्ड
टाइप का था...
वो अंदर से आया सबको रे ते
करते हुए ट्रेन के गेट पर खड़ा हो गया...

मुम्बई की लोकल ट्रेन प्लेटफार्म
पर खड़ी थी..
जैसे ही ट्रेन चालू हुयी तो लड़के
ने एक लड़की को देखते हुए
बोला..

"ओये चलती क्या साथ में"..

और यही बात वो कई लड़कियों
को बोलते रहा...

ट्रेन बस धीरे से स्टार्ट ही हुयी थी
और सब चुपचाप खड़े हैं, किसी
ने कुछ बोलने की जहमत नहीं उठाई...
कौन सुबह सुबह अपना दिमाग
ख़राब करेगा..?
लेकिन मुझसे रहा नहीं गया मैंने बोल दिया
"अरे भाई वो तेरी बहन है"..

बस फिर क्या मेरे इतना बोलते
ही लड़का भड़क गया और मुझे
मराठी में गाली देने लगा...
बात बढ़ गयी फिर भी सब शांत थे..

और वो लड़का एकदम फ़िल्मी
स्टाइल में मुझे बोला तेरी बहन है क्या.???

तुझे क्यों इतना दर्द हो रहा है..??

मैंने भी उसी लैंग्वेज में रिप्लाई किया...

अबे तेरी बहन है बोला तो...

दिमाग में बात नहीं घुस रही है क्या??

तुझे समझ में नहीं आया अभी तक..?

हालाकि लड़का अकेले था
इसीलिए मैंने उसे झड़प करने
की हिम्मत जुटाई वर्ना अकेले
कौन अपना सर फुड़वाये...

इतने में अंदर से ही कुछ मराठी
भाइयों ने सपोर्ट किया और उस
लड़के को गेट से अंदर घसीट लिया...

फिर क्या था..
लोगों ने सुबह ही उसकी जमकर धुलाई कर दी..

मुझे ख़ुशी हुयी कि सही सबक
दिया गया एक गलत इंसान को,,,

दोस्तों जिस दिन भारत के
युवाओं ने लड़कियों पर होने
वाले कमेंट के खिलाफ आवाज
बुलंद कर दी और आज की तरह
ही सबक सिखाने की ठान ली
उसी दिन से इन मनचलो का मन ठंडा हो जाएगा....

एक कहावत सुनी थी बचपन में
"लात के भूत बात से नहीं मानते"

अब ऐसे लोगों को यही उपाय सूट होगा।

राज__

Sunday, July 26, 2015

"माँ का आँचल"

माँ का आँचल,
दुनिया का सबसे सूकून वाला स्थान है,,
माँ की ममता का क्या कहना,
उनके बच्चे ही उनकी दुनिया और जहान हैं,,

माँ की खुशियाँ उनके बच्चों में होती है,,
और यही बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो
माँ एक कोने में बैठे रोती है...

हे ईश्वर अगर तुझमें शक्ति है तो समझा इन मूर्खो को,,
इस ममतामई करुणामयी को रुलाने वाली संतान कभी खुश नहीं होती है...

स्वरचित__ राज

"श्राद्ध" क्या है.?

👉 एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया ।

मुझसे कहा- ‘आज माँ का श्राद्ध है, माँ को लड्डू बहुत पसन्द है, इसलिए लड्डू लेने आया हूँ '

मैं आश्चर्य में पड़ गया ।
अभी पाँच मिनिट पहले तो मैं उसकी माँ से सब्जी मंडी में मिला था ।

मैं कुछ और कहता उससे पहले ही खुद उसकी माँ हाथ में झोला लिए वहाँ आ पहुँची ।

मैंने दोस्त की पीठ पर मारते हुए कहा- 'भले आदमी ये क्या मजाक है ?
माँजी तो यह रही तेरे पास !

दोस्त अपनी माँ के दोनों कंधों पर हाथ रखकर हँसकर बोला, ‍'भई, बात यूँ है कि मृत्यु के बाद गाय-कौवे की थाली में लड्डू रखने से अच्छा है कि माँ की थाली में लड्डू परोसकर उसे जीते-जी तृप्त करूँ ।

मैं मानता हूँ कि जीते जी माता-पिता को हर हाल में खुश रखना ही सच्चा श्राद्ध है ।

आगे उसने कहा, 'माँ को मिठाई,
सफेद जामुन, आम आदि पसंद है ।
मैं वह सब उन्हें खिलाता हूँ ।

श्रद्धालु मंदिर में जाकर अगरबत्ती जलाते हैं । मैं मंदिर नहीं जाता हूँ, पर माँ के सोने के कमरे में कछुआ छाप अगरबत्ती लगा देता हूँ ।

सुबह जब माँ गीता पढ़ने बैठती है तो माँ का चश्मा साफ कर के देता हूँ । मुझे लगता है कि ईश्वर के फोटो व मूर्ति आदि साफ करने से ज्यादा पुण्य
माँ का चश्मा साफ करके मिलता है ।

यह बात श्रद्धालुओं को चुभ सकती है पर बात खरी है ।
हम बुजुर्गों के मरने के बाद उनका श्राद्ध करते हैं ।
पंडितों को खीर-पुरी खिलाते हैं ।
रस्मों के चलते हम यह सब कर लेते है, पर याद रखिए कि गाय-कौए को खिलाया ऊपर पहुँचता है या नहीं, यह किसे पता ।

अमेरिका या जापान में भी अभी तक स्वर्ग के लिए कोई टिफिन सेवा शुरू नही हुई है ।
माता-पिता को जीते-जी ही सारे सुख देना वास्तविक श्राद्ध है ॥

माँ पापा से प्यार करें 

कष्ट न देना उस भगवन को___

वो माँ ही है इस दुनिया में
जिसने तुमको पाला है,,
खुद तो भूखी रह लेगी
तुम्हे अपना दिया निवाला है,,

माँ की महिमा इस जग में
यारों बहुत निराली है,,
माँ है तो सब कुछ है यारों
माँ ममता की प्याली है...

कष्ट न देना उस भगवन को,
जिसने तुमको जन्म दिया,,
पाला पोसा उसने तुमको,
अपना पूरा करम किया,,,

अब तुम भी अपने जीवन में,
अच्छा कोई काम करो,,
अपने माँ बापू का बस तुम,
ऊँचे शिखर पे नाम करो,,
माँ पापा से प्यार करें

स्वरचित:- राज उपाध्याय

Wednesday, July 8, 2015

माँ के आँचल में जब कभी भी झपकियाँ आईं

ऐसा लगता है कि ख्वाब ओढ़े मस्तियाँ आईं,
माँ के आँचल में जब कभी भी झपकियाँ आईं।
मैंने सूरज की गर्म किरणों का मतलब जाना,
जब से शाल ओढ़े मेरे घर पे सर्दियाँ आईं।

ऐसी चोटें भी तो बड़ी नसीब वाली हैं ,
जिनकी खातिर खुद ही चलके हल्दियाँ आईं।
उनका आकाश उन्हें माफ कभी करता नहीं,
जिस जमीं के परिन्दों में सुस्तियाँ आईं।

जिनके पाँव इस तरफ जले थे रेत के संग-संग,
उनकी खातिर ही उस तरफ से कस्तियाँ आईं।
कोई देखे तो परेशानी राजधानी की,
जब से आवाम के तेवर में तल्खियाँ आईं।

अपने बेटों के लिए बोझ बन गये 'राज',
जब से माँ-बाप के चेहरे पे झुर्रियाँ आईं।

माँ पापा से प्यार करें

Saturday, July 4, 2015

मेरी माँ जग से है प्यारी...

माँ जैसा ना कोई जग में..
इसकी महिमा है रग रग में..

माँ अतुल्य है इस जीवन में..
माँ का प्रेम बसा कण कण में..

माँ ही तो चलना सिखलाये..
धूप छाँव का ज्ञान कराये..

माँ की महिमा सबसे न्यारी..
मेरी माँ जग से है प्यारी..
मेरी माँ जग से है प्यारी...

स्वरचित- राज उपाध्याय

Tuesday, June 16, 2015

प्रिय कुदरत__

प्रिय कुदरत,

आज जब मैं मुम्बई में बैठा तुम्हें खत लिख रहा हूं तो उत्तर एवं पूरब भारत के यूपी, बिहार और नेपाल की तरफ से मुझे लाशों और नए खरीदे कफन की बू आ रही है.
तुम इतनी निर्मम कब से बन गई. हम इंसानों की गलतियों पर बुरा मानकर तबाही मचाने का ये तुम्हारा ये पेशेवर अंदाज मुझे कचोट रहा है.

भूकंप के बाद दफ्तर से लौटते हुए एक रेस्त्रां में कुछ खाने गया, तो मेरी नजर रेस्त्रां में खड़े सिक्योरिटी गार्ड पर पड़ी. टीवी पर भूकंप की खबरें देखती उसकी निगाहें आंसूओं से छलकने लगी.
पास जाकर वजह पूछी तो मालूम चला कि उसके गांव से कुछ किलोमीटर की दूरी पर ही जनकपुर है. जहां भूकंप आने से उसकी कितनी ही यादें भयानक मलबे में दब चुकी हैं. आंसू पोंछते हुए सिक्योरिटी गार्ड बस इतनी ही बोल पाया, कुदरत अब जालिम हो चली है.

बचपन से नैतिक शिक्षा के पाठ में ये सबक सीखता आया हूं कि कुदरत से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए. छोटे बच्चे से बड़ा हो चला हूं, पर ये सबक मैं और मुझ जैसे बहुत से लोग अब भी नहीं सीख पाए हैं. अफसोस इतनी पुरानी और उदास दिलों को अपने एक हवा के झोंके से चहका देने वाली कुदरत भी दिल से बड़ी नहीं हो पाई.

हमारी कुदरत अब सुकून पहुंचाने वाली कुदरत नहीं, पेशेवर हो चली है. बदला लेने वाली कुदरत. हजारों लाशों की छाती पर रोते-पीटते हाथ और उदास निगाहें आज तुम्हारी वजह से पत्थर हो चली हैं.

शनिवार को भूकंप के बाद तुम्हारा एक फिर नया रूप देखने को मिला.
घर परिवार के सदस्य गाँव में होने के वजह से मैंने गाँव फोन लगाया तो पता चला फिर से कुदरत का कहर आने वाला है
तुम्हारे बदला लेने के दौरान मैं कॉल पर ही था. लोगों के घर से बाहर भागने के डर और
कुछ पल बाद बच जाने पर तुम्हारे खेल पर हंसते हुए लोगों को सुनना.

तुम्हारी घड़ी यानी सूरज जैसे जैसे दाएं से बाएं की तरफ बढ़ी, घरवालों और बाहर काम कर रहे लोगों के चेहरे पर चौंकती आंखों को दुख से टिमटिमाते देखने लगा. बड़ा बुरा लगा. कोई फर्क नहीं लगा तुम में और हम इंसानों में. कुदरत अब तुम्हारा दिल भी छोटा हो चला है, हम इंसानों की तरह.
हिमालय जैसा सीना लिए तुम आज भी एक घोर कलयुगी इंसान की तरह दिखाई दी, जो बदला लेने और खुद को ऊपर रखने के इरादे से जिंदगी के बीच सफर में लोगों को धोखा दे देते हैं.

भूकंप के बारे में तुम्हारे बदले को सोच ही रहा था कि कल के अखबार की पहली खबर पर नजर गई. फलां गांव में किसान ने की खुदकुशी. कुल संख्या बढ़कर इतनी हुई. वजह वही, बारिश.

कभी कम बारिश की वजह से तो कभी ज्यादा बारिश की वजह से.
तुम इतनी पत्थर दिल हो चली हो कि शहर में की हमारी छेड़छाड़ का बदला गांव में मेहनत करने वाले गरीब किसानों से लेने लगी हो.

किसानों की मौत के लिए कोई सरकार और नेता से कहीं
ज्यादा जिम्मेदार तुम हो. गांव को तबाह कर शहर बनाने वाले बारिश के आने पर समोसे चाय का लुत्फ उठाते हुए फेसबुक अपडेट और आई लव रैन करते रहे तुम बारिश के जरिए कहर बरसाती रही.

शहर की वाहवाही के बीच तुम्हें गांव में खड़ी फसलें और घरों की खुंटियों में टंगे पसीने से तर किसानों के मटमैले कपड़े नहीं दिखाई दिए.
खड़ी फसलें तुम्हारी तेज बारिश की वजह से लंगड़ी होकर गिर पड़ीं और जिन खेतों से किसान के परिवार को फसल की उम्मीद थी, वहां उनके बेटे-बाप-भाई-पति की लाश उगने लगी.

कुदरत कभी कहर बरसाने से फुर्सत मिले तो सोचना खेतों में फसल की जगह किसी अपने की लाश को लटकते देखना कैसा लगता होगा.
हम इंसान तुम्हारे पहाड़ों की तरह पत्थर नहीं हुए हैं.
अपनों की लाश को देखकर सीने के भीतर ज्वालामुखी सा फट जाता है. बस चीखने की आवाज कुछ देर में शांत हो जाती है. पर तुम अपने कठोर दिल और बदले रूप के फेर में धीरे-धीरे एक शांत प्रकृति से भयानक बदला लेने वाली कुदरत हो चली हो.
कुदरत, तुमसे छेड़छाड़ और दखल के लिए तुमसे माफी मांगना महज दिखावा होगा. इसलिए मैं तुमसे बस एक बात कहना चाहूंगा,
कुदरत की एक किस्त इंसान की उस मुस्कान से है जो उसने तुमसे हासिल की है. हम लोगों की जिंदगी में अब भी एक सुकून देने वाली ममता का सहारा कुदरत ही है. तुम ही हो.
इंसान को उसकी गलतियों के लिए एक बड़े दिल वाली कुदरत की तरह माफ करने और तुम्हें कम अहमियत देने का अधिकार देते हुए हमें वो सारे
हक दो, जब हम तुम्हारे शुक्रगुजार रहें. ठीक उसी तरह जैसे बचपन में मेरे किसान पापाजी दीवाली पर घर में दीया जलाने से पहले एक दीया खेत के बीच में रखकर पूरे हक से कहते थे,

'जागो धरती मां जागो'.

"राज"

Monday, June 8, 2015

गाँव से मुम्बई

मन उदास है आज___

अशांत मन ना जाने क्यों बिना बोले ही सब कुछ बोल रहा है___
सबकी बातें सुन के खुद को कहीँ टटोल रहा है__

आज वापस उसी मुम्बई में जाना है जहां लोग तो हज़ारो हैं पर अपना कोई नहीं____

यहाँ अपनी मातृभूमि अपने गाँव में कितना सुन्दर लगता है____

जिधर से निकलो सुबह से शाम चाचा प्रणाम भईया प्रणाम
और उनका आशीर्वाद लेते रहना एक आनन्दमयी एहसास दिलाता है____

तन यहीं का..
मन यहीं का..
सारा जीवन यहीं का..

यहाँ की तपती धूप भी जैसे एक अच्छी छाँव लगती हो...

यहां की सनसनाती गर्म हवायें (लू) भी मन को अलग सूकून देती हैं...

यहां के चिड़ियों के चहक__
खिलते हुए फूलों की महक__
हमे अपनत्व का एहसास कराती हैं____
हमें हमारे गाँव की बहुत याद आती है___

सुबह शाम बस खुशियों की दौड़ रहती है___

आज गाँव की उड़ती धूल मिट्टी में अपने कई यादों को समेटे हुए मन बावरा सा हो चला है___

न जाने क्या बोल रहा है ना जाने किसकी सुन रहा है___
बस खुद के मन की बातों को जीवन के कच्चे धागे से बून रहा है___

जैसा मन चाहे जियों__
जैसी भी आज़ादी चाहिए लो__
ना कोई रोक ना टोक__

और पता है ऐसा क्यूँ.????

क्योंकि____

यहां प्रेम है___
यहां अपनत्व है__
यहां संस्कार है___
यहाँ परिवार है_____



Sunday, May 10, 2015

ममता दिवस "मातृ दिवस"



ममता दिवस पर क्या लिखूं..???

क्या लिखू माँ के लिए..???

ये एक अकेला ऐसा शब्द है जो पूरी दुनिया को समेटे हुए हैं...

माँ एक प्रेम की अद्भुत शिला है,,
माँ से सारी दुनिया को प्रेम मिला है,,

माँ की लोरी में दुनिया समाई है,,
माँ नहीं तो सारी दुनिया पराई है,,

रात उठ के बिस्तर को संभालती है वो,,
अपना सारा जीवन आपके लिए निकालती है वो,,

वो माँ प्रेम की एक चादर है,,
वो माँ ही करुणामयी सागर है,,

वो माँ ही जीवन की चौपाई है,,
वो माँ ही प्रेम की गहरी खाई है,,

वो माँ ही है जो हर वक़्त डाँटती है,,
और तुम्हारे भूखे पेट को खुद के कलेजे से पाटती है,,

वो खुद को खोकर भी आपको जगाती है,,
ज़िन्दगी की मुश्किल दौड़ में चलना वो ही सिखाती है,,

वो साये की तरह तुम्हारे साथ रहती है,,
तुम खुश रहो यही सदा ईश्वर से कहती है,,

वो तुमारे गले की रुद्राक्ष की माला है,,
वो है तो जीवन भर उजाला है,,

तुम उसके फूल और वो तुम्हारी माली है,,
बिना तुम्हारे उसकी जीवन की बगिया खाली है,,

वो कड़कती धुप में तुम्हारे तन का साया है,,
पता नहीं उस माँ को कैसे ईश्वर ने बनाया है,,

माँ माथे पर लगाया हुआ एक भव्य चन्दन है,,,
इस जहाँ में माँ को मेरा हार्दिक अभिनन्दन हैं,,,

सभी मित्रों को ममता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

कविता लेखक:- राज उपाध्याय

Saturday, April 25, 2015

वो गरीब का ही बेटा था,,,,,,,

वो गरीब का ही बेटा था,,,,,,,

गुमसुम बैठ रहता था वो,
कभी न कुछ भी कहता था वो,,
वो गरीब का ही बेटा था,
सबकी बोली सहता था जो,,

भूख प्यास जब उसे सताती,,
खाली पेट नींद ना आती,,
कोई उसको कुछ भी कह दे पर सबसे दूर ही रहता था वो,,
वो गरीब का ही बेटा था सबकी बोली सहता था जो,,

समय समय पर लोग भी उसको बहुत रुलाते थे,,
निर्ममता और बेरहमी की हद पार कर जाते थे,,
घर में बीमार माँ भी उसको अपने जान से प्यारी थी,,
क्योंकि उसकी ज़िन्दगी माँ ने ही संवारी थी,,
बस इक आंसू के नइया में बैठ के बहता रहता था जो,,
वो गरीब का ही बेटा था सबकी बोली सहता था जो,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय

Wednesday, April 15, 2015

वो माँ ही है, जो ऐसी होती है...



माँ कैसी होती है...

बचपन में हम नाटक करते
तो मार मार के खिलाती थी,,
फिर खुद ही कहती मेरा राजा बेटा है
और फिर हसाती थी,,
कहीं खेलते खेलते ज़रा सी
खरोच आ जाती थी,,
तो माँ हल्दी तेल लेकर
भागी दौड़ी आती थी,,
आज भी मुझे उदास देखकर
वो आँखे भर के रोती है,,
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है,,,

जो परिवार की खुशियों में
निवछावर कर दे जीवन अपना,
सबके सपने पूरा करते-करते
वो भूले खुद अपना सपना,,
जो घर में काम करने वाली
मशीन समझी जाती है..
वो माँ ही है जो सबको
खुशियाँ देना चाहती है..

कब कौन उसको क्या बोल देता है..
कब कौन अपने तीखे मुह खोल देता है..
जो इन सब बातों की फिकर
नहीं करती है..
बस हर पल हर दिन हम सब
के लिए जीती मरती है..
जो खुद को हर साँचे में ढाल लेती है..
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है...

घर में सुई जूता बेल्ट और टाई..
सब चीजें हमने माँ से मंगवाई..
माँ है तो सब कुछ आशानी से मिल जाता है..
गर कुछ ना मिले तो हर कोई माँ को चिल्लाता है..
फिर भी वो खुद की खुशियों को
सब में बाँट देती है..
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है...

खुद होगा बुखार तो चुपके से रोयेगी
पर किसी को ना बोलेगी..
गर किसी सदस्य को कुछ हुआ तो
डॉक्टर के लिए दरवाजा सबसे पहले खोलेगी..
माँ ही है जो प्यार के बीज
सबके लिए बोती है,,,
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है,,,,

जीवन के हर पड़ाव पे
ग़मों का पहाड़ खुद ही ढोती है,,,
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है,,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय

Monday, April 6, 2015

"प्रेम"



आज की कविता "प्रेम" पर

प्रेम में दुनिया गर समा जाए तो,,
प्रेम के रंग से गर रंगा जाए तो,,
प्रेम को बस मन ये जगा जाए तो,,
गर क्रोध को ये मन खा जाए तो,,

तो दुनिया में हर कोई प्रेम का दीवाना हो जाए,,
तो प्रेम का ही हर जगह ठिकाना हो जाए,,

प्रेम माँ के लिए प्रेम पिता के लिए,,
प्रेम राम के लिए प्रेम सीता के लिए,,
प्रेम भाई के लिए प्रेम बहन के लिए,,
प्रेम राधा और किशन के लिए,,

प्रेम में ही जियो प्रेम में ही मरो,,
जो भी करना है सब प्रेम से ही करो,,
सबको एक दूजे से प्रेम गर हो जाए तो,,
प्रेम में ही दुनिया गर खो जाए तो,,,

प्रेम सच्चा है दुनिया यही कहती है,
प्रेम के मन में खुशियाँ भरी रहती हैं,,
प्रेम ही प्रेम हो जाए सबको यहाँ,,,
प्रेम के बिना जीने का मज़ा है कहाँ,,,,

प्रेम नज़रों से होती और दिल में समा जाती है,,
जब कुछ न समझ आये तो प्रेम सब समझा जाती है,,

प्रेम शब्दों में, साँसों में, बातो में हो,,
प्रेम जीवन के हर मुलाकातों में हो,,
प्रेम ख़ुशी में भी हो प्रेम गम में भी हो,,
प्रेम जीवन के हर एक क्षण में भी हो,,

प्रेम की नइया पर हर कोई चढ़ो,,
प्रेम करके ही हर कोई आगे बढ़ो,,,,,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय

Wednesday, March 25, 2015

""मन की बात-2""

""मन की बात"

प्यार हम जिससे करते हैं..
जिसे दिल के अंतरआत्मा में रख कर पूजते हैं..
जिसके बिना हम पल भर भी नहीं जीवित रह सकते..
हम उसी से नफ़रत भी बहुत करने लगते हैं.........

दरअसल पिछले कुछ दिनों पहले  मैंने अपने घर में रखी भगवान् की फ़ोटो तोड़ दी..
सब कुछ घर से बाहर फ़ेंक दिया..

काफी लोग बहुत नाराज हुए और मुझसे भला बुरा कहने लगे...

तुम्हे भगवान् से डर नहीं लगता...?
तुम इतने बड़े हो गए हो की भगवान् की फ़ोटो घर से बाहर फेंक रहे हो..?
अरे एक पल में तुम्हे ख़त्म कर सकते हैं वो और तुम अपने आपको बहुत बलवान समझने लगे हो..?
अरे अभी तुम बच्चे हो..
भगवान् तुम्हारी परीक्षा ले रहा है..

ऐसी बहुत सारी बातें कही लोगों ने...

कुछ मित्रों ने भी बहुत समझाया की ऐसा नहीं करना चाहिए था...
और मैं सभी लोगों की बातो को सही कह रहा हूँ, सत्य हैं, सर्वमान्य हैं सबकी बातें...
लेकिन अब मैं उन सभी परिवार जनों और मित्रों को बताना चाहूँगा की

जब मैं रोता उसके सामने हूँ..
हसता उसके सामने हूँ..
मांगता उससे हूँ..
बोलता उससे हूँ..
प्यार उससे करता हूँ...
तो अपनी नाराजगी किसके सामने दिखाऊं..?
कोई है क्या उससे बड़ा..?

नहीं न..?

तो बंधुओं प्रियजनों मेरी जगह आकर सोचो और परिस्थिति को समझो तब सब समझ आएगा...

वरना वैसे तो सब बहुत कुछ कहते रहते हैं...

मेरा मानना है कि जब सर्वशक्तिमान वो ही है तो कहीं और क्यों जाना।

***जय श्री राम***

Monday, March 23, 2015

ईश्वर की बनायी गयी अतुल्य रचना है "माँ" और "पिता"



माँ अपने आप में एक ईश्वर की बनायी गयी अतुल्य रचना है,
जिसने माँ को दुःख दिया संसार में उसे कहाँ बचना है,,

ये वो शक्ति है जो आपको हर ठोकर से बचाती है,,
अपने बच्चे की ख़ुशी के लिए ये दुनिया से लड़ जाती है,,

माँ को बनाकर ईश्वर भी समझ नहीं पाया,
इसीलिए वो खुद जन्म लेकर इस धरती पर आया,,

दोस्तों एक दुआ माँ की तुम्हारी जिंदगी संवार देगी,,
उधड़े हुए चेहरे को पल भर में निखार देगी,,

मत बनो पत्थर उस मोम के दिल पर,
वर्ना ना मिलेगा कुछ भी तुम्हे सबकुछ मिलकर,,

बहुत लोग मिलते हैं जो बर्बाद करते हैं,
ये माँ पिता ही हैं जो बच्चों को आबाद करते हैं,,

माँ पिता जैसा संसार में नहीं कोई दूजा है,,
हर मंदिर हर धाम इनके चरणों की पूजा है...,,,,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय (जौनपुरी)





Saturday, March 21, 2015

माँ जब मैं संसार में आया..



आज मैं मेरे जिगरी मित्र
चन्दन पाण्डेय के घर गया था
और वहाँ उन्होंने अपने मोबाइल
से मुझे एक कविता माँ पर सुनाई
और मैं वहीँ उस कविता को
सुनकर रोने लगा...
और उस कविता को किसी आधी
पढ़ी हुयी किताब की तरह छोड़ दिया....
रात भर मुझे नींद नहीं आई
मैं परेशान हो गया...
फिर मन में एक कविता लिखने
का ख़याल आया और लिख दिया..

प्रस्तुत है आप सब के बीच आज
की लिखी हुयी यह कविता..

""माँ जब मैं संसार में आया""

माँ जब मैं संसार में आया,
सबसे पहले तुझको पाया,,

तूने कठिनाई सें मुझको,
पाला पोषा बड़ा बनाया,,
पूष की ठंडी-ठंडी रात में
माँ तूने ही मुझे बचाया,,
मेरे मीठे कंठ से निकला
पहला स्वर माँ ही था आया,,
माँ जब मैं संसार में आया,
सबसे पहले तुझको पाया,,

तुम्हे सभी ने बहुत रुलाया,
हर वक़्त है तुझे सताया,,
फिर भी कभी नहीं निकली
तेरी कंठ से आह,
क्योंकि तुम्हे मेरे चेहरे से
थी प्यारी हंसी की चाह,,

खुद तो भीगी कम्बल ले ली,
मुझको सूखे में है सुलाया,,
मुझे कभी कुछ भी हो जाता,
सबसे पहले तुझे समझ है आया,

तुम ही हो माँ जिसने मुझको
है चलना सिखलाया,
मुझ अबोध बालक को तुमने ही
दुनियाँ का ज्ञान कराया,,
माँ जब मैं संसार में आया,
सबसे पहले तुझको पाया,,

तेरे ही दम पर माँ मैंने चलना सीखा है,
दुनियां से लड़ना भी माँ मैंने तुझसे ही सीखा है,,
मेरे ह्रदय में माँ बस तेरा ही वास है,
हर पल हर घडी बस तेरा ही एहसास है,,

जब मुश्किल में होता हूँ
माँ याद तुम्हारी आती है,
दुःख के हर नईया को
माँ पार तू ही लगाती है,,
हर समय लगता माँ,
सिर पर हाथ तुम्हारा है,,,
हर घडी हर पल माँ
लगता साथ तुम्हारा है,,,

सागर की गहराई जैसा....
नीले गगन की ऊंचाई जैसा....
तेरा प्यार है मैंने पाया....
माँ जब मैं संसार में आया....
सबसे पहले तुझको पाया....

कविता लेखक:- राज उपाध्याय

Thursday, March 19, 2015

ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,,

 


खुद में बड़ी शक्ति है इतना न वहम कर..
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,,

ये उम्र में तेरा साथ न होना मुझे खलता है,
वक़्त बुरा लगता है जब तन्हाई में ढलता है,,
क्यूँ अकेला छोड़ रही, कुछ तो शरम कर,,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,

तू जब अपनी पे आती है,
तब क्यूँ नखरे दिखाती है,,
अब मेरे लिए बस तू इतना सा करम कर,,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,,

ऐ ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी करता है हर कोई,
ना जाने क्या है तुझमे जो मरता है हर कोई,
साथ ले ले हमे भी, और हमें भी सहन कर,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,,

मैं नासमझ कभी तुझे पाने की जिद करता हूँ,
और कभी तुझसे दूर जाने की जिद करता हूँ,
लोग समझते मैं पागल हूँ, अब इस पागलपंती को दहन कर,,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब ज़रा सा रहम कर,,,,,,

अजीब है ऐ ज़िन्दगी तू, जो लोगों से खेलती है,
सबसे अलग है तू, सबको जो झेलती है,,
अब ये तन्हाई का धंधा तू जल्दी से ख़तम कर,,,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब ज़रा सा रहम कर,,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय

Tuesday, March 17, 2015

"मन की बात"

मन की बात

मैं काफी दिनों से सोच रहा था की मैं यहां लिखूं या नहीं लिखूं लेकिन आज रहा नहीं गया और आप सबके बीच अपने मन की बात रख रहा हूँ..

दरसल मैं बचपन में पुणे जिला के एक शहर लोनावला में लायंस पॉइंट पर चाय और भजिया बेचता था...

वहाँ मेरा नाम राहुल था और मैं बहुत फेमस भी हो गया था..

तब मेरे चाचा जी(मालिक) को देखता था जो एयरफोर्स में हैं
(उनका ये साइड बिज़नस था) वो भी जब समय मिलता तो आते और मुझे काम के प्रति और जागरूक करते थे और बहुत सपोर्ट करते और उत्साहित करते थे...

दिन भर कहते रहते बेटा फालतू पैसे मत खर्च करो..
जवाबदारी से काम करो..

तब मुझे मन ही मन में लगता था की वो कंजूस हैं..
हर वक़्त पैसे बचाने की बात करते हैं..

लेकिन अब मुझे लगता है की वो क्यों समझाते थे..
अब मुझे धीरे धीरे बहुत कुछ समझ में आने लगा है..

अब पता चला की अंकल ऐसा क्यों कहते थे..

मेरा कहना सिर्फ इतना मात्र है की आज जो माँ बाप के पैसे को फिजूल खर्च कर रहे हैं वो ना करें..

उसका सही उपयोग करें
वरना समय बदलते देर नहीं लगती।

राज उपाध्याय

Monday, March 16, 2015

ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,


वापस कभी बुलाऊँ तो लौट के ना आ,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,

तुझे हंस के जीना तो दुनिया चाह रही है,
पर तू हर दिल की बस एक आह रही है,,
अब जा कही और अब मुझे ना सता,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,

हर वक़्त दुःख ही दे रही तुझे सहकर क्या?
बड़ी बेरहम है तू तेरे साथ रहकर क्या?
जहां सच्चा था मैं वहीँ छोड़कर के आ,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,

बड़ा गुरुर था मुझको तुझ पर ऐ ज़िन्दगी,
करता था दोस्तों से मैं तेरी ही बंदगी,
पर तूने तो मुझको बहुत दिया है रुला,,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,

कब तू छोड़ के जायेगी कर रहा हूँ प्रतीक्षा,
अब तेरे साथ रहने की ज़रा भी नहीं है इच्छा,
बस कर दे अब और मुझपर न सितम ढा,,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय (जौनपुरी)

Thursday, March 12, 2015

मातृ-पितृ पूजन दिवस



नमस्कार हिंदुस्तान
आज 14 फरवरी एक स्पेशल दिन है..

ये उन लोगो का दिन है जिन्होंने
हमें इस संसार का दर्शन कराया..

जिन्होंने हमें चलना सिखाया..
जिन्होंने हमें बोलना सिखाया..

जिन्होंने हमें हँसना सिखाया..
जिन्होंने खुद भूखे रहकर हमको खिलाया..

जिन्होंने हमें हर मुश्किल से बचाया..
जिन्होंने अपनेपन का एहसास दिलाया..

ये उन लोगों का दिन है
जिन्होंने हमें पृथ्वी पर ही स्वर्ग दिखाया...

और ये वही लोग हैं जिन्हें हम ईश्वर से बढ़कर पूजते हैं..

और वो हैं हम सब के
.
****माता-पिता****

आईये हम सब मिलके प्रणाम करे अपने जन्मदाता को..

राज उपाध्याय


जुड़ें:- Always Love Your Parents से

Sunday, March 8, 2015

झूठ के जहां में सच कही खो जाता है...



अपना हो या हो पराया इससे दुःख ही तो पाता है...
इस झूठ के जहां में सच कही खो जाता है...

क्या पता सच क्यों नहीं है अब किसी के अंदर
हर जगह उफान पर है झूठ का समंदर
फरेबी दुनियां में हर कोई झूठ को अपनाता है...
इस झूठ के जहां में सच कही खो जाता है...

हर कोई झूठ से आपको यहां लूटेगा
उसे क्या खबर कि विश्वास कहाँ टूटेगा
पता नहीं लोगों को झूठ क्यों भाता है
इस झूठ के जहां में सच कही खो जाता है

अब मक्कारी के दम पे टीकी है दुनिया सारी
पता नहीं कहाँ से आ गयी ये बीमारी
सब समझ कर भी कुछ समझ नहीं आता है..
इस झूठ के जहां में सच कही खो जाता है..

लेखक:- राज उपाध्याय

Saturday, March 7, 2015

मन मेरा अब सिर्फ रो रहा..



अब ये दुःख बर्दास्त नहीं हो रहा..
मन मेरा अब सिर्फ रो रहा..

ये तेरा क्या दस्तूर है भगवन,
जो मेरी चलती नईया को डुबो रहा..
"मन मेरा अब सिर्फ रो रहा""..

क्यूँ फीका किया इस होली के रंग को,
क्यों चकनाचूर किया मेरे खिलते उमंग को,
मन में क्यूँ नफ़रत के बीज बो रहा..
"मन मेरा अब सिर्फ रो रहा""..

ये कैसी मोह माया है,
जो अब तक समझ ना आया है,
तू काहे इतना सताये है..
मेरा दुःख क्यों तेरे मन भाये है..
दर्द मुझे अब बहुत हो रहा,
"मन मेरा अब सिर्फ रो रहा"",

तड़प तड़प के अब आह निकल रही है,
अब तेरी पूजा भी मेरे लिए बिफल रही है,
तू क्यूँ मारता है उसको जिसका नहीं कोई कसूर,
अजब है तेरी दुनिया और अजब तेरा दस्तूर,
समझ में नहीं आ रहा कि क्यूँ ऐसा हो रहा,
मन मेरा अब सिर्फ रो रहा,
""मन मेरा अब सिर्फ रो रहा"",

लेखक:- राज उपाध्याय

Wednesday, March 4, 2015

बेरहम दुनिया

यातनाओं के संग्रह का बुने तानाबाना ,
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

जो खुश होता है अपने छोटे से आशियाने मे,
ना जाने क्यूं वो चुभता है आंखो मे जमाने के,
"चाहता नही कोई उसे सुखी संतुष्ट देख पाना "
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

स्वयं ही सदा जो नेकी की राह चलता है,
अनुशाशित नियमों का यथार्थ पालन करता है,
"फिर भी सब चाहते है उसी को सिखाना"
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

जिह्वा से लोग जब तीक्ष्ण व्यंग वार करते है,
हृदय मे वो शब्द कटार से चुभते है,
" होता है बस परिस्थितियों से समझौता कर रो के रह जाना "
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

विषधरों की नगरिया मे बसते है हम,
आदतन एक दूजे को डंसते है हम,
"प्रेम का सावन हुआ पतझड़ वीराना "
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

पग पग पर होते छलावे यहां,
प्यार के रह गये बस दिखावे यहां,
"आवरण पर चढे आवरण रेश्मी
मुश्किल हुआ अब इससे निकल पाना "
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

बांध विस्वास के टूट कर बह गये,
मर्यादा के पुल भी बिखर ढह गये,
"संस्कारो का सिलसिला हुआ है बेमाना "
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

ना होगा साथ कोई अकेले बढो तुम,सफलता तुम्हारे कदम चूम लेगी,
अगर जी सको तो जियो झूमकर तुम,प्रखरता तुम्हारे कदम चूम लेगी,
"पडेगा स्वयं ही उम्मीदों की वर्तिका जलाना "
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

नेकी ने झेला सदा ही बुराई को अब शांति की क्रांति लानी है,
इस मजहब के रेले मे चाहत की गंगा बहानी है,
"समझौते का अब नही है ठिकाना  "
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना.

नन्हा दिया भी कुछ देर टिमटिमाता है,
डूबता हुआ सूरज  भी कुछ देर फर्ज निभाता है,
"कोई  साथ दे ना दे कारवां मिले ना मिले ,
हमे बस अनवरत चलते ही जाना "
नही जीने नही देगी ये बेर हम दुनिया ये निर्मम जमाना.

' यातनाओ के संग्रह का बुने तानाबाना,
ये बेरहम दुनिया ये निर्मम जमाना '

मेरी बहन लेखक:- श्रद्धा पाण्डेय

Monday, March 2, 2015

जिन राहों पर मंज़िल ना हो

जिस डाली पर नीड़ बने ना
उस पर जा कर रहना कैसा
जिन राहों पर मंज़िल ना हो
उन पर चलना-चलना कैसा

जो डग सागर को ना जाए
उस पथ पर बहती क्यों नदिया
जो धारा तट तक ना जाए
उससे क्यों टकराती नैया

जिन पुष्पों में रंग न उभरें
उनका खिलना है क्या खिलना
जिनको जीवन मर्म न दरसे
उनका जीना भी क्या जीना

जो पयोद बे-मौसम बरसे
उसमें नाच नाचना कैसा
जिन बोलों से भरम न टूटे
उनको रटना-रटना कैसा

जिन तारों से वाद्य न फूटें
उनको कसना-कसना कैसा
जिन गीतों से सार न उपजे
उनको गाना, गाना कैसा

ब्लॉगर->> राज उपाध्याय

Sunday, March 1, 2015

यह जमीं है गाँव की..



गौर से देखो इसे और प्यार से निहार लो
आराम से बैठो यहाँ पल दो पल गुजार लो
सुध जरा ले लो यहाँ पर एक हरे से घाव की
कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..

कुल कुनबा और कुटुम का अर्थ बेमानी हुआ
ताऊ चाचा खो गये सब, खो गई बड़की बुआ
गाँव भर रिश्तों की कैसी डोर में ही था बँधा
जातियों का भेद रिश्तों की तराजू था सधा
याद है अब तक धीमरों के कुएं की छाँव की
कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..

आपसी संबंधों के चौंतरों पर बैठ कर
थे सभी चौडे बहुत ही रौब से कुछ ऐंठ कर
था नही पैसा बहुत और न अधिक सामान था
पर मेरे उस गाँव में सबका बहुत सम्मान था
माँग कर कपडे बने बारातियों के ताव की..
कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की..

गाँव का जब से शहर में आना जा हो गया
गाँव का हर आदमी अब खाना खाना हो गया
सैंकडों बीघे का मालिक गाँव का अपना ही था
तनख़्वाह के चक्कर मे रामू शहर में है खो गया
बात करनी है मुझे उस दौर के ठहराव की..
कि यह जमीं है गाँव की, हाँ ये जमीं है गाँव की...

ब्लॉगर>> राज उपाध्याय

Tuesday, February 24, 2015

इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है.



"मां"

तू सागर स्नेह का प्रेम का चंदन है ,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है.

"मणि रत्नो सी तू सुंदर है,गंगा की ज्योति स्वरूपा है"
"इस परम पावनी पृथ्वी पर तेरा जन्म अनूपा है "

तू अद्भुद अदम्य साहस का क्रन्दन है,,,,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है,,,,

"तू अलौकिक शक्ति का दिव्य प्रकाश है"
"तेरे हृदय मे वात्सल्य के स्नेह पुंज का वास है"

तू झर्ना है प्रेम का, करुणा का संगम है,,,,
इस जहा मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है,,,,

"हिमगिरि से उच्च हृदय तेरा ,तपस्या की मूर्ति है"
"ईस संसार की रचना ,जन जीवन की पूर्ति है"

ईस दुनिया रूपी फुलवारी का करती तू सिंचन है,,,,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है,,,,

"तू चांद सी शीतल,गंगाजल सी निर्मल है"
"तुझसे ही हमारा आज, तुझसे ही हमारा कल है"

तेरे चरणो मे हमारा कोटिशह वन्दन है,,,,
इस जहां मे "मां" तेरा हर्दिक अभिनंदन है,,,,

"तेरे दामन मे सिर्फ प्यार,क्षमा,सहनशीलता के फूल है"
"हम सब तो तेरे चरणो की धूल है"

तू रुप है ईश्वर का तेरी अभिव्यक्ति अकिंचन है,,,,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है,,,,

" नयनो मे अश्रुधारा है,परंतु आत्मा मे अपार  संयम है,
"तू अस्तित्व है घर का,संघर्ष कर्तव्य से लक्ष्य प्राप्ति का दर्पन है"

भगवान के भी बस का नही तेरी उपमा का वर्णन है ,,,,
ईस जहां मे"मां"  तेरा हर्दिक अभिनंदन है ,,,,,

तू सागर है स्नेह का प्रेम का चंदन है,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है.

मेरी बहन लेखक:- श्रद्धा पाण्डेय

Thursday, February 19, 2015

भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर..


आँख भर आई जब बहन ने भेजा तो
वो इसलिए नहीं कि कविता अच्छी है
बल्कि सिर्फ इसलिए की मेरी बहन कितना
समझ चुकी है मुझे ये सोचकर आँखे काफी देर तक नहीं रुकी..

मेरी बहन "श्रद्धा" ने लिखी मेरे लिए ये कविता...

भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर...

वो एक हस्ती है जमाने की जिसका कारवां चलता है ,
महकते हुए फूलों की क्यारियों का बागवां मचलता है,

जिसको मिलती खुशी दूसरों को हंसाकर..
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

हृदय मे स्नेह प्यार की गंगा बहा करती है,
सह्रिदयता, सरलता की बयार महका करती है,

देखकर फरिश्ते भी हँसते है खिलखिलाकर....
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

कितनी सादगी है कितना भोलापन छिपा है,
करुणा निष्ठा और तपस्या की अद्भुत शिला है,

कैसे बनाया क्या सोचकर तुझे
ये तो पूछे कोई उस ईश्वर से जाकर..
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

दीन दुखियों की रक्षा मे सदा ही खडे होते है,
औरों के दुखो में खुद भी रोते हैं,

ईश्वर ने इन्हें बनाया है सूर्य का तेज मिलाकर....
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

मां शक्ति है उनकी बडी निर्मल ममता है,
वो उन्ही के लिये जीता और उन्ही के लिए हँसता है,

खिल उठी तेरी मां तुझ जैसे बेटे को पाकर....
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

है किसी बहुमूल्य खजाने की नदी सा, ज्ञान का किनारा सा,
लिखते है वो कुछ बहुत मीठा अच्छा प्यारा सा,

धन्य हो गयी कविता कामिनी तुझको पाकर....
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर……

मायूस ना हो किसी मुश्किल मे यही सीखा और सिखाया है,
मुस्कुराहट की लौ जलाकर खुश रहने का तरीका बताया है,

कितनी शक्ति है कितना संयम है उनमे
जान पाये ना हम चाह से चाहकर..
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर……

मेहनत की प्रशन्शा करता है खुशियों की यही कहानी है,
मेहनत से सब कुछ मिलता है सफलता की यही निशानी है,

मिलता नही कुछ भी बिना जीते हारकर...
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर……

क्या क्या कहू मै कितना बखान करु,
शब्द है ही नही कैसे बयान करू,

कहूगी बस यही तू है अवर्नित अलौकिक
अनुपम शक्ति की चादर..
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर……

बहन कवित्री :- श्रद्धा पाण्डेय

Tuesday, February 17, 2015

खुशियाँ बाँट और मुस्कुराता चल..



तू चलता चल की अभी तेरी मंजील रही है पुकार ,
पतझड़ का मौसम गया अभी , आएगी अब तो बहार ,

हार न मान तू , ग़म तो है बहता पानी
आगे बढ़ता चल इसी का नाम है जीन्दगानी

क्या हुआ जो आज साथ नही तेरे ये दुनियाँ
ख़ुद ही ढूंढ तू आज अपने लिए खुशियाँ

तू अकेला ही चलता चल अगर दुनियाँ तेरे साथ नही
कठीनाइयों से घबराकर रुक जाना ये भी तो कोई बात नही

पानी की असली कीमत एक प्यासा ही समझ पाया है
अंत तक रुका है जो वीजय - ध्वज उसी ने फहराया है

कभी मुश्किलों से हार कर नीराश मत होना
जीतेगा तू मगर जीतने की आस मत खोना

मुश्कीलों से भाग कर भला कौन जीत पाया है
जिसने डरना नही सीखा है वीजय गीत उसी ने गाया है

जीवन बहता पानी है खुशी और ग़म तो आते जाते रहेंगे
मंजील तो पायेंगे वही जो हर स्थीती में मुस्कुराते रहेंगे

हर पल तू खुल के जी ले ये लम्हा तुझे बाद मे याद आएगा
फ़ीर तू लाख चाहे लेकिन इस लम्हे को वापस ला नही पायेगा

खुशियाँ बाँट और मुस्कुराता चल उसके बिना जीवन बेकार है
जीवन का यही दस्तूर है कीसी की जीत तो कीसी की हार है

तू चलता चल की अभी तेरी मंजील रही है पुकार ,
पतझड़ का मौसम गया अभी , आएगी अब तो बहार।

Monday, February 16, 2015

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..



ज़िन्दगी से परेशान "राज उपाध्याय" की ये कविता
शायद आप सबको पसंद आये..

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

कब से परेशान बैठा हूँ खुशियों की राह में,
अब मैं जाऊँ कहाँ और किसकी पनाह में,
ये ज़िन्दगी का फलसफा नहीं समझाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

क्या खुशियों का दौर अब नहीं रह गया,
ये कैसी बारिश है जिसमें सब कुछ बह गया,
तू इतना हैरान करके रुलाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

आज रब से मुझे तू मिला दे जरा,
एक तिनके का सहारा दिला दे ज़रा,
हर वक़्त इतना मुझे तड़पाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

छोड़ अपनी जिद और मुझको जीने दे
सुख के सागर को अब मुझे पिने दे
तू अपने चक्कर में इतना मुझे भरमाती है क्यूँ
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

अब सहन शक्ति की भी हद हो गयी है
नींद समझो अब मेरी कही खो गयी है
वक़्त को कह दे साथ दे मेरा मुझे यूँ उलझाती हैं क्यूँ
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

लेखक:- राज उपाध्याय (जौनपुरी)