Saturday, March 21, 2015

माँ जब मैं संसार में आया..



आज मैं मेरे जिगरी मित्र
चन्दन पाण्डेय के घर गया था
और वहाँ उन्होंने अपने मोबाइल
से मुझे एक कविता माँ पर सुनाई
और मैं वहीँ उस कविता को
सुनकर रोने लगा...
और उस कविता को किसी आधी
पढ़ी हुयी किताब की तरह छोड़ दिया....
रात भर मुझे नींद नहीं आई
मैं परेशान हो गया...
फिर मन में एक कविता लिखने
का ख़याल आया और लिख दिया..

प्रस्तुत है आप सब के बीच आज
की लिखी हुयी यह कविता..

""माँ जब मैं संसार में आया""

माँ जब मैं संसार में आया,
सबसे पहले तुझको पाया,,

तूने कठिनाई सें मुझको,
पाला पोषा बड़ा बनाया,,
पूष की ठंडी-ठंडी रात में
माँ तूने ही मुझे बचाया,,
मेरे मीठे कंठ से निकला
पहला स्वर माँ ही था आया,,
माँ जब मैं संसार में आया,
सबसे पहले तुझको पाया,,

तुम्हे सभी ने बहुत रुलाया,
हर वक़्त है तुझे सताया,,
फिर भी कभी नहीं निकली
तेरी कंठ से आह,
क्योंकि तुम्हे मेरे चेहरे से
थी प्यारी हंसी की चाह,,

खुद तो भीगी कम्बल ले ली,
मुझको सूखे में है सुलाया,,
मुझे कभी कुछ भी हो जाता,
सबसे पहले तुझे समझ है आया,

तुम ही हो माँ जिसने मुझको
है चलना सिखलाया,
मुझ अबोध बालक को तुमने ही
दुनियाँ का ज्ञान कराया,,
माँ जब मैं संसार में आया,
सबसे पहले तुझको पाया,,

तेरे ही दम पर माँ मैंने चलना सीखा है,
दुनियां से लड़ना भी माँ मैंने तुझसे ही सीखा है,,
मेरे ह्रदय में माँ बस तेरा ही वास है,
हर पल हर घडी बस तेरा ही एहसास है,,

जब मुश्किल में होता हूँ
माँ याद तुम्हारी आती है,
दुःख के हर नईया को
माँ पार तू ही लगाती है,,
हर समय लगता माँ,
सिर पर हाथ तुम्हारा है,,,
हर घडी हर पल माँ
लगता साथ तुम्हारा है,,,

सागर की गहराई जैसा....
नीले गगन की ऊंचाई जैसा....
तेरा प्यार है मैंने पाया....
माँ जब मैं संसार में आया....
सबसे पहले तुझको पाया....

कविता लेखक:- राज उपाध्याय