Monday, June 8, 2015

गाँव से मुम्बई

मन उदास है आज___

अशांत मन ना जाने क्यों बिना बोले ही सब कुछ बोल रहा है___
सबकी बातें सुन के खुद को कहीँ टटोल रहा है__

आज वापस उसी मुम्बई में जाना है जहां लोग तो हज़ारो हैं पर अपना कोई नहीं____

यहाँ अपनी मातृभूमि अपने गाँव में कितना सुन्दर लगता है____

जिधर से निकलो सुबह से शाम चाचा प्रणाम भईया प्रणाम
और उनका आशीर्वाद लेते रहना एक आनन्दमयी एहसास दिलाता है____

तन यहीं का..
मन यहीं का..
सारा जीवन यहीं का..

यहाँ की तपती धूप भी जैसे एक अच्छी छाँव लगती हो...

यहां की सनसनाती गर्म हवायें (लू) भी मन को अलग सूकून देती हैं...

यहां के चिड़ियों के चहक__
खिलते हुए फूलों की महक__
हमे अपनत्व का एहसास कराती हैं____
हमें हमारे गाँव की बहुत याद आती है___

सुबह शाम बस खुशियों की दौड़ रहती है___

आज गाँव की उड़ती धूल मिट्टी में अपने कई यादों को समेटे हुए मन बावरा सा हो चला है___

न जाने क्या बोल रहा है ना जाने किसकी सुन रहा है___
बस खुद के मन की बातों को जीवन के कच्चे धागे से बून रहा है___

जैसा मन चाहे जियों__
जैसी भी आज़ादी चाहिए लो__
ना कोई रोक ना टोक__

और पता है ऐसा क्यूँ.????

क्योंकि____

यहां प्रेम है___
यहां अपनत्व है__
यहां संस्कार है___
यहाँ परिवार है_____