Monday, March 2, 2015

जिन राहों पर मंज़िल ना हो

जिस डाली पर नीड़ बने ना
उस पर जा कर रहना कैसा
जिन राहों पर मंज़िल ना हो
उन पर चलना-चलना कैसा

जो डग सागर को ना जाए
उस पथ पर बहती क्यों नदिया
जो धारा तट तक ना जाए
उससे क्यों टकराती नैया

जिन पुष्पों में रंग न उभरें
उनका खिलना है क्या खिलना
जिनको जीवन मर्म न दरसे
उनका जीना भी क्या जीना

जो पयोद बे-मौसम बरसे
उसमें नाच नाचना कैसा
जिन बोलों से भरम न टूटे
उनको रटना-रटना कैसा

जिन तारों से वाद्य न फूटें
उनको कसना-कसना कैसा
जिन गीतों से सार न उपजे
उनको गाना, गाना कैसा

ब्लॉगर->> राज उपाध्याय