खुद में बड़ी शक्ति है इतना न वहम कर..
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,,
ये उम्र में तेरा साथ न होना मुझे खलता है,
वक़्त बुरा लगता है जब तन्हाई में ढलता है,,
क्यूँ अकेला छोड़ रही, कुछ तो शरम कर,,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,
तू जब अपनी पे आती है,
तब क्यूँ नखरे दिखाती है,,
अब मेरे लिए बस तू इतना सा करम कर,,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,,
ऐ ज़िन्दगी ऐ ज़िन्दगी करता है हर कोई,
ना जाने क्या है तुझमे जो मरता है हर कोई,
साथ ले ले हमे भी, और हमें भी सहन कर,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब जरा सा रहम कर,,
मैं नासमझ कभी तुझे पाने की जिद करता हूँ,
और कभी तुझसे दूर जाने की जिद करता हूँ,
लोग समझते मैं पागल हूँ, अब इस पागलपंती को दहन कर,,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब ज़रा सा रहम कर,,,,,,
अजीब है ऐ ज़िन्दगी तू, जो लोगों से खेलती है,
सबसे अलग है तू, सबको जो झेलती है,,
अब ये तन्हाई का धंधा तू जल्दी से ख़तम कर,,,
ऐ बेरहम ज़िन्दगी, अब ज़रा सा रहम कर,,,
कविता लेखक:- राज उपाध्याय