छुपके से किसी कोने में रोते हैं...
लोग दीवाने क्यों होते हैं...
हर गहरी साजिश के पीछे,
दोस्त पुराने क्यों होते हैं...
बन गए दिल पर बोझ जो,
ऐसे साथ निभाने क्यों होते हैं...
हर युग में दिल के शीशे को,
पत्थर खाने क्यों होते हैं...
जब भी वक़्त बुरा आता है,
अश्क बहाने क्यों होते हैं...
जो रंजो-गम नाप न पायें,
वो पैमाने क्यों होते हैं...
अश्कों से तर आँख हो फिर भी,
लब मुस्काने क्यों होते हैं...
यारोँ लोगोँ की तिरछी नज़रों के,
हम ही निशाने क्यों होते हैं...?
राज उपाध्याय
लोग दीवाने क्यों होते हैं...
हर गहरी साजिश के पीछे,
दोस्त पुराने क्यों होते हैं...
बन गए दिल पर बोझ जो,
ऐसे साथ निभाने क्यों होते हैं...
हर युग में दिल के शीशे को,
पत्थर खाने क्यों होते हैं...
जब भी वक़्त बुरा आता है,
अश्क बहाने क्यों होते हैं...
जो रंजो-गम नाप न पायें,
वो पैमाने क्यों होते हैं...
अश्कों से तर आँख हो फिर भी,
लब मुस्काने क्यों होते हैं...
यारोँ लोगोँ की तिरछी नज़रों के,
हम ही निशाने क्यों होते हैं...?
राज उपाध्याय