Monday, February 16, 2015

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..



ज़िन्दगी से परेशान "राज उपाध्याय" की ये कविता
शायद आप सबको पसंद आये..

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

कब से परेशान बैठा हूँ खुशियों की राह में,
अब मैं जाऊँ कहाँ और किसकी पनाह में,
ये ज़िन्दगी का फलसफा नहीं समझाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

क्या खुशियों का दौर अब नहीं रह गया,
ये कैसी बारिश है जिसमें सब कुछ बह गया,
तू इतना हैरान करके रुलाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

आज रब से मुझे तू मिला दे जरा,
एक तिनके का सहारा दिला दे ज़रा,
हर वक़्त इतना मुझे तड़पाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

छोड़ अपनी जिद और मुझको जीने दे
सुख के सागर को अब मुझे पिने दे
तू अपने चक्कर में इतना मुझे भरमाती है क्यूँ
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

अब सहन शक्ति की भी हद हो गयी है
नींद समझो अब मेरी कही खो गयी है
वक़्त को कह दे साथ दे मेरा मुझे यूँ उलझाती हैं क्यूँ
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

लेखक:- राज उपाध्याय (जौनपुरी)