अपना हो या हो पराया इससे दुःख ही तो पाता है...
इस झूठ के जहां में सच कही खो जाता है...
क्या पता सच क्यों नहीं है अब किसी के अंदर
हर जगह उफान पर है झूठ का समंदर
फरेबी दुनियां में हर कोई झूठ को अपनाता है...
इस झूठ के जहां में सच कही खो जाता है...
हर कोई झूठ से आपको यहां लूटेगा
उसे क्या खबर कि विश्वास कहाँ टूटेगा
पता नहीं लोगों को झूठ क्यों भाता है
इस झूठ के जहां में सच कही खो जाता है
अब मक्कारी के दम पे टीकी है दुनिया सारी
पता नहीं कहाँ से आ गयी ये बीमारी
सब समझ कर भी कुछ समझ नहीं आता है..
इस झूठ के जहां में सच कही खो जाता है..
लेखक:- राज उपाध्याय
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