अब ये दुःख बर्दास्त नहीं हो रहा..
मन मेरा अब सिर्फ रो रहा..
ये तेरा क्या दस्तूर है भगवन,
जो मेरी चलती नईया को डुबो रहा..
"मन मेरा अब सिर्फ रो रहा""..
क्यूँ फीका किया इस होली के रंग को,
क्यों चकनाचूर किया मेरे खिलते उमंग को,
मन में क्यूँ नफ़रत के बीज बो रहा..
"मन मेरा अब सिर्फ रो रहा""..
ये कैसी मोह माया है,
जो अब तक समझ ना आया है,
तू काहे इतना सताये है..
मेरा दुःख क्यों तेरे मन भाये है..
दर्द मुझे अब बहुत हो रहा,
"मन मेरा अब सिर्फ रो रहा"",
तड़प तड़प के अब आह निकल रही है,
अब तेरी पूजा भी मेरे लिए बिफल रही है,
तू क्यूँ मारता है उसको जिसका नहीं कोई कसूर,
अजब है तेरी दुनिया और अजब तेरा दस्तूर,
समझ में नहीं आ रहा कि क्यूँ ऐसा हो रहा,
मन मेरा अब सिर्फ रो रहा,
""मन मेरा अब सिर्फ रो रहा"",
लेखक:- राज उपाध्याय
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