वापस कभी बुलाऊँ तो लौट के ना आ,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,
तुझे हंस के जीना तो दुनिया चाह रही है,
पर तू हर दिल की बस एक आह रही है,,
अब जा कही और अब मुझे ना सता,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,
हर वक़्त दुःख ही दे रही तुझे सहकर क्या?
बड़ी बेरहम है तू तेरे साथ रहकर क्या?
जहां सच्चा था मैं वहीँ छोड़कर के आ,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,
बड़ा गुरुर था मुझको तुझ पर ऐ ज़िन्दगी,
करता था दोस्तों से मैं तेरी ही बंदगी,
पर तूने तो मुझको बहुत दिया है रुला,,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,
कब तू छोड़ के जायेगी कर रहा हूँ प्रतीक्षा,
अब तेरे साथ रहने की ज़रा भी नहीं है इच्छा,
बस कर दे अब और मुझपर न सितम ढा,,
ऐ ज़िन्दगी अब मुझको छोड़ कर के चली जा,,
कविता लेखक:- राज उपाध्याय (जौनपुरी)
2 comments:
सच ये जिंदगी अगर चली जाती छोर के तो बात ही क्या होता ।।। बोहोत अच्छा लिखा हैं आपने।
धन्यवाद अर्चना जी।
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