Saturday, August 1, 2015

आज सुबह का सूरज हमको गौरव का प्रतिमान लगा,

आज सुबह का सूरज हमको गौरव का प्रतिमान लगा,
किरणों में थी शौर्य ऊष्मा,जागा हिंदुस्तान लगा,

बाईस वर्षों की पीड़ा को आखिर मिली दवाई है,
फांसी पर याकूब चढ़ा है,भारत माँ मुस्काई है,

लेकिन सारे घटनाक्रम पर जब नज़रे दौड़ाता हूँ,
मन झुंझला जाता हैं मैं भी अंदर तक हिल जाता हूँ,

देखो तो ये चपल मीडिया,क्या क्या नही दिखाती है,
आतंकी की हर हरकत को ब्रेकिंग न्यूज़ बताती है,

कब सोया याकूब?नाश्ता उसने कब स्वीकार किया,
कब कुरान को पढ़ने बैठा,कब कैसा व्यवहार किया,

फांसी के पहले का आलम कुछ ऐसे दिखलाया है,
जैसे कोई लाल भगत सिंह फांसी चढ़ने आया है,

शर्म करो ए बी पी न्यूज़,अब तक मन क्या भरा नही?
उन विस्फोटों में कोई भी सगा तुम्हारा मरा नही,

सबसे तेज़ खबर वालों तुम भी ज़ख्मों से जुड़ जाते,
अगर तुम्हारे अपनों के भी वहां चीथड़े उड़ जाते,

विस्फोटों के पीड़ित परिवारों को क्यों बिसराया था,
आतंकी के खानदान पर ही क्यों दिल भर आया था,

भूल शहादत, सब दहशत पर नर्म दिखाई देते हैं,
चैनल वाले छटे हुए बेशर्म दिखाई देते हैं,

भूषण सा खरदूषण रावण की माफ़ी को आया था,
आधी रात कई काले कोटों ने शोर मचाया था,

गद्दारों की नही चली भारत का मान बचाना था,
फांसी पर पापी लटकाकर नया सवेरा लाना था,

पर मन कहे, सारे बवाल निपटा देते,
जितने थे हमदर्द उन्हें भी फाँसी पर लटका देते।

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