कभी कभी लगता है कि जीवन की राह बड़ी कठिन है.. जीवन की ये गर्म भट्टी में खुद को झोंक कर तपाना फिर खुद को इस तपे हुए भट्ठे से निकाल कर खुद को ही तराशना और फिर खुद को कच्चा पाना कितना कठिन है न??? हमे उलझनों से निवृत्त होने की कितना ज्यादा पड़ी है.. हम हर वक़्त इन उलझनों को सुलझा कर भाग खड़े होने की राह खोजने में तत्पर हो जाते हैं और यहीं से हम अपने जीवन मे गलतियां सुरु करते हैं.. क्योंकि उलझनों को सुलझा पाना कहाँ किसी के बस की बात है... जब भी हम सुलझाने की कोशिश करते हैं तब हम पतंग के बिखरे हुए मांझे की तरह उसी में उलझ जाते हैं.. और इस तरह उलझते हैं कि पहली उलझन को बाजू में रखकर दूसरी उलझन को फिर से सुलझाने में लगे रहते हैं इसी तरह क्रमबद्ध होकर हम अपने ही उलझनों को सुलझाने में खुद को खोना सुरु लर देते हैं है... खुद को खोना क्या है आखिर.?? शायद यही कि आप अपनी ही पतंग के अपने ही मांझे में उलझ गए हो..!! आखिर हम आप चाहते क्या है.?? उलझना या सुलझना.?? शायद हर कोई सुलझने की जद्दोजहद में उलझा हुआ है.. इसीलिए लगता है कि सुलझना कठिन है.. क्योंकि हम सुलझने के लिए ही उलझ रहे हैं.. खुद को पाने की कोशिश में बचे हुए खुद को खो रहे हैं... और इसीलिए हम राख न होते हुए भी राख हो रहे हैं.. ज़िंदगी कठिन है परंतु इतनी उलझी है क्या.?? जितना हमने इसे उलझा रखा है.?? कभी कभी तो लगता है हाँ सत्य यही है कि कठिन है यह जीवन की राह.. फिर समझ आता है राह कठिन है या चाह.??? ये जद्दोजहद हमे किसी चौराहे के मोड़ पर लाकर खड़े रखकर खूब ठहाके लगाकर हंसती हैं और कहती है...
उलझने उलझा रही हों, तब सुलझ दिखलाओ तुम !
राह अब मुश्किल हुई है, तय करो बतलाओ तुम..!!
इसीलिए जीवन जीने की सोचो जीवन को समझने की नही...
वरना- उलझ उलझ कर सुलझ नही पाना है.!
बल्कि और उलझते ही चले जाना है...!!
जीवन कठिन है पर कठोर नही... बिंदास रहिए मुस्कुराहट को बनाये रखिये और उलझनों को खुद के मांझे में उलझे रहने दीजिये।
Monday, January 24, 2022
उलझने उलझा रही हों, तब सुलझ दिखलाओ तुम..
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