Tuesday, February 24, 2015

इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है.



"मां"

तू सागर स्नेह का प्रेम का चंदन है ,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है.

"मणि रत्नो सी तू सुंदर है,गंगा की ज्योति स्वरूपा है"
"इस परम पावनी पृथ्वी पर तेरा जन्म अनूपा है "

तू अद्भुद अदम्य साहस का क्रन्दन है,,,,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है,,,,

"तू अलौकिक शक्ति का दिव्य प्रकाश है"
"तेरे हृदय मे वात्सल्य के स्नेह पुंज का वास है"

तू झर्ना है प्रेम का, करुणा का संगम है,,,,
इस जहा मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है,,,,

"हिमगिरि से उच्च हृदय तेरा ,तपस्या की मूर्ति है"
"ईस संसार की रचना ,जन जीवन की पूर्ति है"

ईस दुनिया रूपी फुलवारी का करती तू सिंचन है,,,,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है,,,,

"तू चांद सी शीतल,गंगाजल सी निर्मल है"
"तुझसे ही हमारा आज, तुझसे ही हमारा कल है"

तेरे चरणो मे हमारा कोटिशह वन्दन है,,,,
इस जहां मे "मां" तेरा हर्दिक अभिनंदन है,,,,

"तेरे दामन मे सिर्फ प्यार,क्षमा,सहनशीलता के फूल है"
"हम सब तो तेरे चरणो की धूल है"

तू रुप है ईश्वर का तेरी अभिव्यक्ति अकिंचन है,,,,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है,,,,

" नयनो मे अश्रुधारा है,परंतु आत्मा मे अपार  संयम है,
"तू अस्तित्व है घर का,संघर्ष कर्तव्य से लक्ष्य प्राप्ति का दर्पन है"

भगवान के भी बस का नही तेरी उपमा का वर्णन है ,,,,
ईस जहां मे"मां"  तेरा हर्दिक अभिनंदन है ,,,,,

तू सागर है स्नेह का प्रेम का चंदन है,
इस जहां मे "मां" तेरा हार्दिक अभिनंदन है.

मेरी बहन लेखक:- श्रद्धा पाण्डेय

Thursday, February 19, 2015

भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर..


आँख भर आई जब बहन ने भेजा तो
वो इसलिए नहीं कि कविता अच्छी है
बल्कि सिर्फ इसलिए की मेरी बहन कितना
समझ चुकी है मुझे ये सोचकर आँखे काफी देर तक नहीं रुकी..

मेरी बहन "श्रद्धा" ने लिखी मेरे लिए ये कविता...

भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर...

वो एक हस्ती है जमाने की जिसका कारवां चलता है ,
महकते हुए फूलों की क्यारियों का बागवां मचलता है,

जिसको मिलती खुशी दूसरों को हंसाकर..
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

हृदय मे स्नेह प्यार की गंगा बहा करती है,
सह्रिदयता, सरलता की बयार महका करती है,

देखकर फरिश्ते भी हँसते है खिलखिलाकर....
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

कितनी सादगी है कितना भोलापन छिपा है,
करुणा निष्ठा और तपस्या की अद्भुत शिला है,

कैसे बनाया क्या सोचकर तुझे
ये तो पूछे कोई उस ईश्वर से जाकर..
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

दीन दुखियों की रक्षा मे सदा ही खडे होते है,
औरों के दुखो में खुद भी रोते हैं,

ईश्वर ने इन्हें बनाया है सूर्य का तेज मिलाकर....
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

मां शक्ति है उनकी बडी निर्मल ममता है,
वो उन्ही के लिये जीता और उन्ही के लिए हँसता है,

खिल उठी तेरी मां तुझ जैसे बेटे को पाकर....
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर....

है किसी बहुमूल्य खजाने की नदी सा, ज्ञान का किनारा सा,
लिखते है वो कुछ बहुत मीठा अच्छा प्यारा सा,

धन्य हो गयी कविता कामिनी तुझको पाकर....
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर……

मायूस ना हो किसी मुश्किल मे यही सीखा और सिखाया है,
मुस्कुराहट की लौ जलाकर खुश रहने का तरीका बताया है,

कितनी शक्ति है कितना संयम है उनमे
जान पाये ना हम चाह से चाहकर..
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर……

मेहनत की प्रशन्शा करता है खुशियों की यही कहानी है,
मेहनत से सब कुछ मिलता है सफलता की यही निशानी है,

मिलता नही कुछ भी बिना जीते हारकर...
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर……

क्या क्या कहू मै कितना बखान करु,
शब्द है ही नही कैसे बयान करू,

कहूगी बस यही तू है अवर्नित अलौकिक
अनुपम शक्ति की चादर..
भाई मेरा अनोखे अमृत का सागर……

बहन कवित्री :- श्रद्धा पाण्डेय

Tuesday, February 17, 2015

खुशियाँ बाँट और मुस्कुराता चल..



तू चलता चल की अभी तेरी मंजील रही है पुकार ,
पतझड़ का मौसम गया अभी , आएगी अब तो बहार ,

हार न मान तू , ग़म तो है बहता पानी
आगे बढ़ता चल इसी का नाम है जीन्दगानी

क्या हुआ जो आज साथ नही तेरे ये दुनियाँ
ख़ुद ही ढूंढ तू आज अपने लिए खुशियाँ

तू अकेला ही चलता चल अगर दुनियाँ तेरे साथ नही
कठीनाइयों से घबराकर रुक जाना ये भी तो कोई बात नही

पानी की असली कीमत एक प्यासा ही समझ पाया है
अंत तक रुका है जो वीजय - ध्वज उसी ने फहराया है

कभी मुश्किलों से हार कर नीराश मत होना
जीतेगा तू मगर जीतने की आस मत खोना

मुश्कीलों से भाग कर भला कौन जीत पाया है
जिसने डरना नही सीखा है वीजय गीत उसी ने गाया है

जीवन बहता पानी है खुशी और ग़म तो आते जाते रहेंगे
मंजील तो पायेंगे वही जो हर स्थीती में मुस्कुराते रहेंगे

हर पल तू खुल के जी ले ये लम्हा तुझे बाद मे याद आएगा
फ़ीर तू लाख चाहे लेकिन इस लम्हे को वापस ला नही पायेगा

खुशियाँ बाँट और मुस्कुराता चल उसके बिना जीवन बेकार है
जीवन का यही दस्तूर है कीसी की जीत तो कीसी की हार है

तू चलता चल की अभी तेरी मंजील रही है पुकार ,
पतझड़ का मौसम गया अभी , आएगी अब तो बहार।

Monday, February 16, 2015

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..



ज़िन्दगी से परेशान "राज उपाध्याय" की ये कविता
शायद आप सबको पसंद आये..

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

कब से परेशान बैठा हूँ खुशियों की राह में,
अब मैं जाऊँ कहाँ और किसकी पनाह में,
ये ज़िन्दगी का फलसफा नहीं समझाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

क्या खुशियों का दौर अब नहीं रह गया,
ये कैसी बारिश है जिसमें सब कुछ बह गया,
तू इतना हैरान करके रुलाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

आज रब से मुझे तू मिला दे जरा,
एक तिनके का सहारा दिला दे ज़रा,
हर वक़्त इतना मुझे तड़पाती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

छोड़ अपनी जिद और मुझको जीने दे
सुख के सागर को अब मुझे पिने दे
तू अपने चक्कर में इतना मुझे भरमाती है क्यूँ
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

अब सहन शक्ति की भी हद हो गयी है
नींद समझो अब मेरी कही खो गयी है
वक़्त को कह दे साथ दे मेरा मुझे यूँ उलझाती हैं क्यूँ
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

ज़िन्दगी तू मुझे इतना सताती है क्यूँ..
बात क्या है आखिर नहीं बताती है क्यूँ..

लेखक:- राज उपाध्याय (जौनपुरी)