बेटे की माँ बन जाने का,गौरव तुमने पाया था,
हुई घोषणा थाल बजाते, छत पर छढ़कर मेरी माँ,,
मैं तो तिर्यक योनी में, घुटनों के बल चलता था,
गिरते को हर बार उठती, हाथ पकरकर मेरी माँ,,
अमृत सा पय पण कराती, आँचल की रख ओट मुझे,
बड़ा हुआ तो खूब खिलाती, हरदम लड़कर मेरी माँ,,
किये उपद्रव तोडा फोड़ी, उपालम्ब भी खूब सहे,
किन्तु नहीं अभिशापित करती, कभी बिगड़कर मेरी माँ,,
लगती तुम ममता की सरिता, मंथर गति से जो बहती,
कभी बनी पाषाण शिला सम, आगे अड़कर मेरी माँ,,
तुम मेरी पैगेम्बर जननी, तुम ही पीर ओलिया हो.
शत शत शत प्रणाम अर्पित है, चरणों पड़ कर मेरी माँ,,,,,
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