जब आँख खुलीं तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था
उसका नन्हा सा अंचल मुझको भूमण्डल सा प्यार था
उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था
उसके स्तन की एक बूँद से मुझको जीवन मिलता था....
हाथो से बालो को नोचा पैरो से खूब प्रहार किया
फिर भी उस माँ ने पुचकारा मुझको जी भर के प्यार किया
मै उसका राजा बेटा था वो आँख का तार कहती थी
मै बनु बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी
उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को निज अंतर में सदा सहेजा था
मेरे सारे प्रश्नो का वो फ़ौरन जवाब बन जाती थी
मेरी राहों के काटें चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी
मै बड़ा हुआ तो कॉलेज से एक रोग प्यार का ले आया
जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया
शादी की पति से बाप बना अपने रिश्तों में झूल गया
अब करवा चौथ मनाता हूँ माँ की ममता को भूल गया
हम भूल गए उसकी ममता मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गए अपना जीवन वो अमृत वाली छाती थी
हम भूल गए वो खुद भूखी रहकर के हमें खिलाती थी
हमको सुख बिस्तर देकर खुद गीले में सो जाती थी
हम भूल गए उसने ही होठो को भाषा सिखलाई थी
मेरी नींदों के लिए रात भर उसने लोरी गायी थी
हम भूल गए उसने हर गलती पर डांटा समझाया था
बच जाऊं बुरी नजर से काल टीका सदा लगाया था
हम बड़े हुए तो ममता वाले सारे बंधन तोड़ आये
बंगले में कुत्ते पाल लिए माँ को बृद्धा आश्रम छोड़ आये
माँ के सपनो का महल गिराकर कंकड़-कंकड़ बीन लिए
खुदगर्जी में आकर उसके सुहाग के आभूषण तक चीन लिए
हम माँ कोघर के बंटवारे की अभिलाषा कर ले आये
उसको पावन मंदिर से गाली की भाषा पर ले आये
माँ की ममता को देख मौत भी आगे से हट जाती है
गर माँ अपमानित होती धरती की छाती फैट जाती है
घर को पूरा जीवन देकर बेचारी माँ क्या पाती है
रुख सुख खा लेती है पानी पीकर सो जाती है
जो माँ जैसी देवी घर के मंदिर में नहीं रख सकते हैं
वो लाखो पुण्य भले कर ले इंसान नहीं बन सकते हैं
माँ जिसको भी जल दे दे वो पौधा संदल बन जाता है
माँ के चरणो को छू कर पानी गंगाजल बन जाता है
माँ के आँचल ने युगों युगों से भगवानो को पाला है
माँ के चरणो में जन्नत है गिरिजाघर और शिवाला है
हिमगिरि जैसी ऊंचाई है सागर जैसी गहराई है
दुनिया में जितनी खूशबू है माँ के आँचल से आई है
माँ कबीरा के साखी जैसी माँ तुलसी की चौपाई है
मीरा बाई की पदावली खुशरो की अमर रुबाई है
माँ आँगन के तुलसी जैसी पावन बरगद की छाया है
माँ वेद ऋचाओँ की गरिमा माँ महाकाव्य की काया है
माँ मानसरोवर ममता का माँ गोमुख की ऊंचाई है
माँ परिवारो का संगम है माँ रिस्तो की गहराई है
माँ हरी दूब है धरती की माँ केशरवाली क्यारी है
माँ की उपमा केवल माँ है माँ हर घर की पुलवारी है
सातो सुर नर्तन करते जब कोई माँ लोरी गाती है
माँ जिस रोटी को छू लेती है वो रोटी प्रसाद बन जाती है
माँ हसती है तो जर्रा जर्रा धरती का मुस्काता है
देखो तो दूर शिखर अम्बाज धरती को शीश झुकाता है
माना मेरे घर की दीवारो में चंदा सी सूरत है
लेकिन मन के इस मंदिर में केवल माँ की मूरत है
माँ सर्श्वती दुर्गा अनसुईया मरियम सीता है
माँ पावनता में रामचरित भगवत गीता है
अब माँ की हर बात मुझे वरदान से बढ़कर लगती है
हे माँ तेरी सूरत मुझको भगवान से बढ़कर लगती है
सारे तीरथ के पुण्य जहाँ मई उन चरणो में लेता हूँ
जिनके कोई संतान नहीं मई उन माओं का बेटा हूँ
हर घर में माँ की पूजा हो ऐसा संकल्प उठाता हूँ
मै दुनिया की हर माँ के चरणो में ये शीश झुकाता हूँ