नमस्कार दोस्तों..!!
बीते कुछ दिनों से मुझे मेरी कई बीती बातें
और लम्हे उकसा रहे हैं कि मैं कहाँ हूँ, और
कैसा हूँ, और पहले कैसा हुआ करता था...
मन मे कहीं न कहीं घमंड पैदा हो रहा था कि
मैं कितना निचले स्तर से आज यहाँ तक पहुंच
पाया हूँ... भावनाएं कभी कभी बहुत अच्छी
होती हैं तो कभी कभी मन घमंडी हो जाता है...
मैंने जीवन मे जो कुछ भी सीखा वह लोनावला
से सीखा और जो कुछ भी हासिल किया उन
सबमे लोनावला का मेरा वह संघर्ष भरा समय
सबसे बड़ा सहयोगी है...
मैं पिछले कई दिनों से खुद में घमंड लिए घूम रहा
था कि मैं क्या से क्या हो गया... लेकिन जब भी मुझे
थोड़ा भी घमंड हुआ मैंने खुद को उसी जगह पर ले
जाकर खड़ा किया जहाँ से मैंने खुद को खड़ा होना
सिखाया था...
कल रात में अचानक 2 बजे मेरी नींद खुली और
मैं समझ नही पा रहा था कि ऐसा क्यों है जो मुझे
नींद नही आ रही है... फिर काफी सोचने के बाद
पता चला कि मन बहुत दुखी है और अपनी एक
अकड़ू(घमंडी) दुनिया बना रहा है... फिर क्या था
स्नान ध्यान किया और सुबह के 4 बजे ही निकल
पड़ा खुद को खुद की औकात बताने...
मैं सुबह करीब 8 बजे पहुंच गया अपने उसी
लोनावला की जंगल की मिट्टियों की खुशबू में
जहाँ मुझे एक अलग सुकून मिलता है... जहाँ
पहुंचते ही मुझमे मुझको मैं दिखने लगता हूँ...
जहाँ का वो रास्ता और वो चाय का कैंटीन
मुझे बताता है कि मैं कहाँ था...
एक अलग सी मनमोहन जगह है लोनावला...
वहां जाने की एक अलग से चाह रहती है मुझमे...
लोनावला मेरे लिए वो स्थान है👇
जहाँ मैं खुद के पैरों पर खड़ा हो गया था..
और जहाँ मैं बचपन मे ही बड़ा हो गया था..
सबसे पहले मेरी किस्मत उसके बाद मेरी
सीखने की इक्षा मेरीबमेहनत और लगन ने
शायद मुझे यहाँ तक पहुंचाया है....
आज भी याद करता हूँ मैं जब वो कल..
धक्क धक्क बढ़ती है मेरी धड़कन हर पल..
मैंने सीखा समझा है बहुत कुछ वहाँ,
जिससे होती है मुझमे नई एक चहल...
आज भी याद करता हूँ मैं जब वो कल..
मेरा घमंड आज फिर टूटा जब वही जगह
के पुराने दोस्तों मुन्ना भइया लक्षण भाऊ और
पंडित जी ने मुझसे कहा राहुल (मेरा दूसरा नाम) तू
बड़ा हो गया (उम्र में) लेकिन ये जगह नही भुला...
चित्र संलग्न कर रहा हूँ लायंस पॉइंट के उस एक
कोने का जिसने मुझमें मुझसे मुझे फिर से रूबरू
कराया...
राज उपाध्याय
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