Tuesday, December 25, 2018

मन की बात -4 लोनावला




नमस्कार दोस्तों..!!

बीते कुछ दिनों से मुझे मेरी कई बीती बातें
और लम्हे उकसा रहे हैं कि मैं कहाँ हूँ, और 
कैसा हूँ, और पहले कैसा हुआ करता था...
मन मे कहीं न कहीं घमंड पैदा हो रहा था कि
मैं कितना निचले स्तर से आज यहाँ तक पहुंच
पाया हूँ... भावनाएं कभी कभी बहुत अच्छी
होती हैं तो कभी कभी मन घमंडी हो जाता है...

मैंने जीवन मे जो कुछ भी सीखा वह लोनावला 
से सीखा और जो कुछ भी हासिल किया उन 
सबमे लोनावला का मेरा वह संघर्ष भरा समय
सबसे बड़ा सहयोगी है... 

मैं पिछले कई दिनों से खुद में घमंड लिए घूम रहा
था कि मैं क्या से क्या हो गया... लेकिन जब भी मुझे
थोड़ा भी घमंड हुआ मैंने खुद को उसी जगह पर ले
जाकर खड़ा किया जहाँ से मैंने खुद को खड़ा होना
सिखाया था...

कल रात में अचानक 2 बजे मेरी नींद खुली और
मैं समझ नही पा रहा था कि ऐसा क्यों है जो मुझे
नींद नही आ रही है... फिर काफी सोचने के बाद
पता चला कि मन बहुत दुखी है और अपनी एक 
अकड़ू(घमंडी) दुनिया बना रहा है... फिर क्या था
स्नान ध्यान किया और सुबह के 4 बजे ही निकल
पड़ा खुद को खुद की औकात बताने...
मैं सुबह करीब 8 बजे पहुंच गया अपने उसी
लोनावला की जंगल की मिट्टियों की खुशबू में
जहाँ मुझे एक अलग सुकून मिलता है... जहाँ
पहुंचते ही मुझमे मुझको मैं दिखने लगता हूँ...
जहाँ का वो रास्ता और वो चाय का कैंटीन
मुझे बताता है कि मैं कहाँ था... 
एक अलग सी मनमोहन जगह है लोनावला...
वहां जाने की एक अलग से चाह रहती है मुझमे...
लोनावला मेरे लिए वो स्थान है👇

जहाँ मैं खुद के पैरों पर खड़ा हो गया था..
और जहाँ मैं बचपन मे ही बड़ा हो गया था..

सबसे पहले मेरी किस्मत उसके बाद मेरी
सीखने की इक्षा मेरीबमेहनत और लगन ने
शायद मुझे यहाँ तक पहुंचाया है....

आज भी याद करता हूँ मैं जब वो कल..
धक्क धक्क बढ़ती है मेरी धड़कन हर पल..
मैंने सीखा समझा है बहुत कुछ वहाँ,
जिससे होती है मुझमे नई एक चहल...
आज भी याद करता हूँ मैं जब वो कल..

मेरा घमंड आज फिर टूटा जब वही जगह 
के पुराने दोस्तों मुन्ना भइया लक्षण भाऊ और 
पंडित जी ने मुझसे कहा राहुल (मेरा दूसरा नाम) तू 
बड़ा हो गया (उम्र में) लेकिन ये जगह नही भुला...

चित्र संलग्न कर रहा हूँ लायंस पॉइंट के उस एक
कोने का जिसने मुझमें मुझसे मुझे फिर से रूबरू
कराया...


राज उपाध्याय


Tuesday, January 2, 2018

क्योंकि वो माँ है!


बर्तनों की आवाज़ देर रात तक आ रही थी,
रसोई का नल चल रहा है,
माँ रसोई में है....

तीनों बहुऐं अपने-अपने कमरे में सोने जा चुकी,
माँ रसोई में है...

माँ का काम बकाया रह गया था,पर काम तो सबका था;
पर माँ तो अब भी सबका काम अपना ही मानती है..

दूध गर्म करके,
ठण्ड़ा करके,
जावण देना है,
ताकि सुबह बेटों को ताजा दही मिल सके;

सिंक में रखे बर्तन माँ को कचोटते हैं,
चाहे तारीख बदल जाये,सिंक साफ होना चाहिये....

बर्तनों की आवाज़ से
बहू-बेटों की नींद खराब हो रही है;
बड़ी बहू ने बड़े बेटे से कहा;
"तुम्हारी माँ को नींद नहीं आती क्या? ना खुद सोती है और ना ही हमें सोने देती है"

मंझली ने मंझले बेटे से कहा; "अब देखना सुबह चार बजे फिर खटर-पटर चालू हो जायेगी, तुम्हारी माँ को चैन नहीं है क्या?"

छोटी ने छोटे बेटे से कहा;  "प्लीज़ जाकर ये ढ़ोंग बन्द करवाओ कि रात को सिंक खाली रहना चाहिये"

माँ अब तक बर्तन माँज चुकी थी

झुकी कमर,
कठोर हथेलियां,
लटकी सी त्वचा,
जोड़ों में तकलीफ,
आँख में पका मोतियाबिन्द,
माथे पर टपकता पसीना,
पैरों में उम्र की लड़खडाहट
मगर,
दूध का गर्म पतीला
वो आज भी अपने पल्लू  से उठा लेती है,
और...
उसकी अंगुलियां जलती नहीं है,
क्योंकि वो माँ है ।

दूध ठण्ड़ा हो चुका,
जावण भी लग चुका,
घड़ी की सुईयां थक गई,
मगर...
माँ ने फ्रिज में से भिण्ड़ी निकाल ली और काटने लगी;
उसको नींद नहीं आती है, क्योंकि वो माँ है!

कभी-कभी सोचता हूं कि माँ जैसे विषय पर लिखना,बोलना,बताना,जताना क़ानूनन बन्द होना चाहिये;
क्योंकि यह विषय निर्विवाद है,
क्योंकि यह रिश्ता स्वयं कसौटी है!

रात के बारह बजे सुबह की भिण्ड़ी कट गई,
अचानक याद आया कि गोली तो ली ही नहीं;
बिस्तर पर तकिये के नीचे रखी थैली निकाली,
मूनलाईट की रोशनी में
गोली के रंग के हिसाब से मुंह में रखी और गटक कर पानी पी लिया...

बगल में एक नींद ले चुके बाबूजी ने कहा;"आ गई"
"हाँ,आज तो कोई काम ही नहीं था"
-माँ ने जवाब दिया,

और

लेट गई,कल की चिन्ता में
पता नहीं नींद आती होगी या नहीं पर सुबह वो थकान रहित होती हैं,
क्योंकि वो माँ है!

सुबह का अलार्म बाद में बजता है,
माँ की नींद पहले खुलती है;
याद नहीं कि कभी भरी सर्दियों में भी,
माँ गर्म पानी से नहायी हो
उन्हे सर्दी नहीं लगती,
क्योंकि वो माँ है!

अखबार पढ़ती नहीं,मगर उठा कर लाती है;
चाय पीती नहीं,मगर बना कर लाती है;
जल्दी खाना खाती नहीं,मगर बना देती है,
क्योंकि वो माँ है!

माँ पर बात जीवनभर खत्म ना होगी,
शेष अगली बार...

और हाँ,अगर पढ़ते पढ़ते आँखों में आँसु आ जाये तो कृपया खुलकर रोइये और आंसू पोछ कर एक बार अपनी माँ को जादू की झप्पी जरूर दीजिये,
क्योंकि वो किसी और की नही,आपकी ही माँ है!


माँ

राज उपाध्याय