Saturday, April 25, 2015

वो गरीब का ही बेटा था,,,,,,,

वो गरीब का ही बेटा था,,,,,,,

गुमसुम बैठ रहता था वो,
कभी न कुछ भी कहता था वो,,
वो गरीब का ही बेटा था,
सबकी बोली सहता था जो,,

भूख प्यास जब उसे सताती,,
खाली पेट नींद ना आती,,
कोई उसको कुछ भी कह दे पर सबसे दूर ही रहता था वो,,
वो गरीब का ही बेटा था सबकी बोली सहता था जो,,

समय समय पर लोग भी उसको बहुत रुलाते थे,,
निर्ममता और बेरहमी की हद पार कर जाते थे,,
घर में बीमार माँ भी उसको अपने जान से प्यारी थी,,
क्योंकि उसकी ज़िन्दगी माँ ने ही संवारी थी,,
बस इक आंसू के नइया में बैठ के बहता रहता था जो,,
वो गरीब का ही बेटा था सबकी बोली सहता था जो,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय

Wednesday, April 15, 2015

वो माँ ही है, जो ऐसी होती है...



माँ कैसी होती है...

बचपन में हम नाटक करते
तो मार मार के खिलाती थी,,
फिर खुद ही कहती मेरा राजा बेटा है
और फिर हसाती थी,,
कहीं खेलते खेलते ज़रा सी
खरोच आ जाती थी,,
तो माँ हल्दी तेल लेकर
भागी दौड़ी आती थी,,
आज भी मुझे उदास देखकर
वो आँखे भर के रोती है,,
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है,,,

जो परिवार की खुशियों में
निवछावर कर दे जीवन अपना,
सबके सपने पूरा करते-करते
वो भूले खुद अपना सपना,,
जो घर में काम करने वाली
मशीन समझी जाती है..
वो माँ ही है जो सबको
खुशियाँ देना चाहती है..

कब कौन उसको क्या बोल देता है..
कब कौन अपने तीखे मुह खोल देता है..
जो इन सब बातों की फिकर
नहीं करती है..
बस हर पल हर दिन हम सब
के लिए जीती मरती है..
जो खुद को हर साँचे में ढाल लेती है..
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है...

घर में सुई जूता बेल्ट और टाई..
सब चीजें हमने माँ से मंगवाई..
माँ है तो सब कुछ आशानी से मिल जाता है..
गर कुछ ना मिले तो हर कोई माँ को चिल्लाता है..
फिर भी वो खुद की खुशियों को
सब में बाँट देती है..
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है...

खुद होगा बुखार तो चुपके से रोयेगी
पर किसी को ना बोलेगी..
गर किसी सदस्य को कुछ हुआ तो
डॉक्टर के लिए दरवाजा सबसे पहले खोलेगी..
माँ ही है जो प्यार के बीज
सबके लिए बोती है,,,
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है,,,,

जीवन के हर पड़ाव पे
ग़मों का पहाड़ खुद ही ढोती है,,,
वो माँ ही है, जो ऐसी होती है,,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय

Monday, April 6, 2015

"प्रेम"



आज की कविता "प्रेम" पर

प्रेम में दुनिया गर समा जाए तो,,
प्रेम के रंग से गर रंगा जाए तो,,
प्रेम को बस मन ये जगा जाए तो,,
गर क्रोध को ये मन खा जाए तो,,

तो दुनिया में हर कोई प्रेम का दीवाना हो जाए,,
तो प्रेम का ही हर जगह ठिकाना हो जाए,,

प्रेम माँ के लिए प्रेम पिता के लिए,,
प्रेम राम के लिए प्रेम सीता के लिए,,
प्रेम भाई के लिए प्रेम बहन के लिए,,
प्रेम राधा और किशन के लिए,,

प्रेम में ही जियो प्रेम में ही मरो,,
जो भी करना है सब प्रेम से ही करो,,
सबको एक दूजे से प्रेम गर हो जाए तो,,
प्रेम में ही दुनिया गर खो जाए तो,,,

प्रेम सच्चा है दुनिया यही कहती है,
प्रेम के मन में खुशियाँ भरी रहती हैं,,
प्रेम ही प्रेम हो जाए सबको यहाँ,,,
प्रेम के बिना जीने का मज़ा है कहाँ,,,,

प्रेम नज़रों से होती और दिल में समा जाती है,,
जब कुछ न समझ आये तो प्रेम सब समझा जाती है,,

प्रेम शब्दों में, साँसों में, बातो में हो,,
प्रेम जीवन के हर मुलाकातों में हो,,
प्रेम ख़ुशी में भी हो प्रेम गम में भी हो,,
प्रेम जीवन के हर एक क्षण में भी हो,,

प्रेम की नइया पर हर कोई चढ़ो,,
प्रेम करके ही हर कोई आगे बढ़ो,,,,,,

कविता लेखक:- राज उपाध्याय