Friday, May 10, 2013

तू ही बता ऐ "ज़िन्दगी" मुझे तुझसे क्या मिला..

तू ही बता ऐ "ज़िन्दगी" मुझे तुझसे क्या मिला,
फिर वही घुटन, रंजिश और वही शिकवा गिला,
मांगी थी सेज फूलों से सजी हुयी,
फिर क्यों मुझे काँटों भरा बिस्तर मिला..
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी मुझे तुझसे क्या मिला,,

चाहा था एक मजबूत सहारा हो मेरा..
फिर क्यों हवा के एक झोंके से मेरा वजूद गिरा..
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी मुझे तुझसे क्या मिला,,

किया था मुहब्बत मैंने भी दिल-ओ-जान से,
फिर क्यों बेवफाई से मिला मुझे हर वफ़ा का सिला..
तू ही बता ए ज़िन्दगी मुझे तुझसे क्या मिला,,

उड़ती रही बस सूखे पत्ते सी हवा में,
फिर क्यों मुझे ना ही जमीन और ना ही आसमान मिला..
तू ही बता ऐ ज़िन्दगी मुझे तुझसे क्या मिला,,


राज उपाध्याय

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