Wednesday, April 24, 2013

ज़िन्दगी से..

ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे,
किसे क्या खबर है कहा टूट जाए..
मोहब्बत के दरिया में तिनका वफ़ा का
ना जाने ये किस मोड़ पर डूब जाएँ,

अजब दिल की बस्ती अजब दिल की वादी,
हर एक मोड़ मौसम नहीं ख्वाहिशों का..
लगाए हैं हमने भी सपनो के पौधे,
मगर क्या भरोसा यहां बारिशों का..

मुरादों के मंज़िल के सपनो में खोये,
मुहब्बत के राहों में हम चल पड़े थे..
जरा दूर छलके जब आँखे खुली तो,
कड़ी धुप में हम अकेले खड़े थे...

जिन्हें दिल से चाहा जिन्हें दिल से पूजा,
नज़र आ रहे हैं वही अजनवी से..
कहानी है शायद ये सदियों पुरानी,
शिकायत नहीं है कोई ज़िन्दगी से...

राज उपाध्याय

No comments: