Tuesday, January 8, 2019

अपना साथी कौन है..?? अपनत्व का शीशा कैसा..??


अपना साथी कौन है.? अपनत्व का शीशा कैसा.?


समय धीरे धीरे बीतता है.. लोग अपने बनते हैं.. 
फिर लोग अपने होकर भी बेगाने की तरह रहते है.. 
ज़िन्दगी के इस कशमकश को कैसे कोई समझे और 
कैसे संभाले .??? यहाँ अपनत्व की परिभाषा रोज
अलग अलग लाइनों में लिखी जाती है.. अकेलेपन 
में खुद को खोजना और बाहर की ढोंगी दुनिया मे 
सबके साथ अपने आपको पाना और जब जरूरत
हो तो सबके रास्ते अपने से अलग देखना क्या ये
अकेलापन ही अपना साथी है..??? 
या कोई और है अपना साथी...??? 
कई बार आप बहुत खुश होते हैं और दिखावे के
आईने में आप खोते जाते हैं... पर जब आपको 
पता चले कि वो बस आईना था तब....????
तब फिर मन खुद को कोसता है और खुद को ही 
अपना साथी मानता है... तब महसूस होता है कि 
अपना सच्चा साथी वो अकेलापन  ही है...
खुद को साथी समझो तो आपको किसी से कोई
उम्मीद नही रहेगी.. कई बार हम खुद से ज्यादा
किसी और पर विश्वास कर लेते हैं... और फिर हम
बहुत उम्मीदें करने लगते है.. और बस किसी एक 
बात से ही अपने अपनत्व का शीशा  धड़ाम से टूट
जाता है... शीशे के बिखराव में आप फिर खुद को
खोजते हैं और हर बिखरे हुए टुकड़ों में आप खुद
को ही पाते हैं... और अंततः आपको फिर विश्वाश
होता है कि अपना साथी तो बस अकेलापन ही है।