Sunday, October 27, 2019

परिवार से दूर दीपावली कैसी.??


सुबह से लेकर शाम तक अनगिनत हैप्पी दीपावली के sms और मैसेज आये हैं.. लोग खूब खुशहाली से व्हाट्सएप्प फेसबुक और भी कई सोशियल मैसेंजर के जरिये खुशियां बांट रहे हैं... msgs ऐसे ऐसे आ रहे हैं कि बस मानो सब एकदम पास में ही और हमेशा साथ ही हैं... पर क्या वाकई ये खुशियाँ हैं.?? जिन्होंने जन्म दिय्या बिना उन लोगों के साथ के दीपावली सच मे मनाई जा सकती है.?? अपनापन क्या उनके जैसा भी किसी का हो सकता है.?? कभी नही.. क्यूंकि माँ माँ ही होती है और परिवार परिवार ही होता है... इस दीपावली की चमचमाती चकाचौंध में भी खुद को आप अकेले क्यूँ पाते हैं.???अकेलेपन में खुद के खुशियों के अस्तित्व को आप कितना भी खोजें पर आपको वो वास्तविक खुशियां नसीब नही हो पाती है... कभी कभी लगता है कि ये पेट पालने के चक्कर ने हमे अपनो से हमेशा के लिए कितना अलग कर दिया है.... ये पापी पेट हम जैसे मध्यम वर्गीय लोगों के लिए अपनत्व को मिटाने में कहीं कसर नही छोड़ रहा है.. और फिर अंत मे हम इसी चकाचौंध को अपना मानते हुए इसी में रमते हुए दूसरे दिन की सुरूवात कर देते हैं और चल देते हैं अपनी उसी मंजिल पर जिसके लिए हम अपने प्रियजनों से दूर रहते हैं...
खैर जीवन संघर्ष है और संघर्ष सफलता का सूत्र.. इसीलिए बंधे रहिये इसी संघर्ष की रस्सी में और करते रहिए पूरी निष्ठा और ईमानदारी से काम.. ईश्वर हमे जरूर परिवार से पास रहने का मौका देंगे।

राज उपाध्याय

Monday, October 7, 2019

सोमनाथ से नागेश्वर और द्वारकापुरी..

!!ॐ नमः शिवाय!!





यात्रा सोमनाथ से द्वारकाधीश और नागेश्वर।।

यात्रा के अंत मे घूमने वाले जगहों और कहां कहाँ जाए किन जगहों पर रुके और कैसे पहुँचे इन सब का विवरण दिया जाएगा।

ठीक पीछे सोमनाथ जी

आइए आपको घुमाते हैं सोमनाथ फिर द्वारकाधीश और फिर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग.. 
जैसा की पुराणों में मान्यता है कि अगर आप महादेव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं तो आपको एक आत्मिक और आध्यात्मिक ताक़त मिलती है..  
तो आइए करे यात्रा साथ मे...

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

मैं और मेरे एक मित्र चंदन जी ने यात्रा सुरु की मुम्बई के एक बिजी स्टेशन बोरीवली से.. तारीख थी 30 सेप्टेम्बर यानी कि सोमवार की रात्रि करीब 10 बजकर 20 मिनट और ट्रैन थी सौराष्ट्र एक्सप्रेस....
हम ट्रैन से दूसरे दिन मंगलवार दिनांक 1 अक्टूबर की मध्य दोपहर करीब 4 बजे वेरावल पहुंचे.. वेरावल से हम दोनों ने बस पकड़ी और खास बात ये की बस सर्विस फ्री में थी.. बस वाले भइया ने हमसे एक रुपये भी नही लिए.. और फिर हम झूमते हुए पहुंचे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के करीब... अब हम ट्रैन में थके हारे आये तो हमने पहले स्नान करके फिर ध्यान करने की सोची जो कि उचित और मान्यताविधि भी है.. हमने वहाँ पर एक होटल बुक किया सिर्फ एक घंटे के लिए जिसका किराया मात्र 200 रुपये था... (हालांकि हमें 150 में भी मिल जाता परंतु ये बात हमे बाद में पता चली).. हमने मस्त में अपने आपको स्वक्ष किया और चल दिये मंदिर की ओर... अब पता चला कि मोबाइल या अन्य कोई बैग इत्यादि आप मंदिर के अंदर नही ले जा सकते फिर हमने मोबाइल के लिए पास में ही बने डिजिटल लॉकर की तरफ रुख किया और मोबाइल जमा कर दिया.. मोबाइल डिजिटल लॉकर में रखने के मात्र 10 रुपये एक घंटे के हैं और एक सुविधा ये भी है कि आपका मोबाइल चार्ज होता रहेगा.. फिर हमने बैगेज काउंटर पर बैग रखा जो कि फ्री सर्विस है और चल दिये दर्शन के लिए.. चढ़ावा लिए और लेकर जैसे जैसे हम मन्दिर में प्रवेश कर रहे थे वैसे वैसे एक सुखद अनुभूति हो रही थी... अंततः हम मंदिर में प्रवेश किये और हमने देखा हमारे महादेव का एक भव्य ज्योतिर्लिंग एक अलग सी चमक और आँखों का अलग सा रुकाव... आंखे एकटक बस ज्योतिर्लिंग पर ही टिकी हुई थी.. ऐसा क्षण महादेव मुझे हमेशा दे यही प्रार्थना उस वक़्त मन मे चल रही थी...दर्शन सम्पन्न करके हम वही मंदिर में ॐ नमः शिवाय का जप करने लगे और करीब आधा घंटे जप करने के बाद हम वहां से मंदिर परिसर में घूमने लगे.. मंदिर के पीछे ही समुन्द्र की लहर एकदम धूप में चमचमाती हुई उफान मार रही थी.. यह सब बहुत आनंदित था... वही मंदिर परिसर में पीछे एक चाचा जी ने हमे टेलिस्कोप (दूरबीन) से समुद्री सैर भी कराई वो भी सिर्फ 5 रुपये में.. उन्होंने हमें बहुत दूर दूर तक मछुआरे की बोट दिखाई और चमचमाते समुन्द्र की लहरों को भी हमने उस दूरबीन से देखा... मंदिर के बाहर भी एक मंदिर है वो भी सोमनाथ मंदिर ही है इसे पुराना मंदिर कहा जाता है जिसका जीर्णोद्धार अहिल्याबाई ने करवाया था.. अब हमने उस मंदिर का भी दर्शन किया और फिर वहां पर लगभग एक घंटे बिताए और फिर वहां से बाहर निकले और कुछ पेट-पूजा की सोची... फिर वहां से हम वेरावल स्टेशन की तरफ बढ़े क्यूंकि हमे उसी रात करीब 10:47 को वेरावल से द्वारका जाने के लिए ट्रेन भी पकड़नी थी...(आप चाहे तो वही ट्रैन सोमनाथ से भी पकड़ सकते हैं वो ट्रेन सोमनाथ से ही आती है) फिर हम वहां से वेरावल स्टेशन आये खास बात ये कि सोमनाथ मंदिर से वेरावल 7 km आने का किराया मात्रा 10 रुपये प्रति व्यक्ति था... फिर हमने भोजन ग्रहण किया और वेरावल के के AC वेटिंग रूम में पहुंच गए ये सब होते होते करीब 9 बज चुके थे.. अब हमें इंतज़ार था सोमनाथ ओखा एक्सप्रेस का.. फिर इंतज़ार खत्म और ट्रेन का सफर सुरु.. रात को ट्रेन लगभग 10:50 पर आई और हम ट्रैन में बैठते ही सो गए...
और अगले दिन 2 अक्टूबर 2019 भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी के जन्मदिवस पर हम प्रातःकाल करीब 8 बजे कान्हा जी की नगरी द्वारका पहुंचे..

द्वारका -

द्वारका पहुंचने से पहले की पवन चक्की


सुंदर दृश्य पवन चक्की और हरियाली


स्टेशन पहुंचने से पहले पवन चक्की का मनोरम दृश्य और समुन्द्र की लहरों की चमचमाहट के साथ हरी भरी हरियाली के बीच का वो दृश्य वाकई अद्भुत था...

यह है द्वारका नगरी ज़ूम करके देखेंगे तो द्वारकाधीश मंदिर दिखाई देगा।

यहाँ पहुंचने के बाद एक अलग अनुभूति थी.. मनमोहक हवा.. ठंढी ठंढी सुबह.. कोमल चिड़ियों की मधुर चहचआहट के बीच हम निकले...

द्वारका स्टेशन।

स्टेशन से पैदल करीब 4 सौ मीटर पर हमारा होटल था... इस चार सौ मीटर की दूरी में हमने किशन कन्हैया मेरे गोपाल की नगरी में करीब 100 गौ माताओं को देखा जो एकदम अपनी मस्ती में एकदम शांत होकर रोड के इधर उधर गुजर रही थी.. मन प्रसन्न और प्रफुल्लित था.. गौ माताओं को प्रणाम करते करते हम होटल पहुंचे... हमने ऑनलाइन बुकिंग की थी तो हमे करीब 1100 में होटल मिल गया था.. (हालांकि होटल्स यहाँ काफी अधिक है तो आपको ऑनलाइन बुकिंग करने की बहुत अधिक आवश्यकता नही है पर आप अपनी सेफ्टी और सुरक्षा के हिसाब से बुक करें).... चेकइन 12 बजे था तो मैंने 200 रूपये एक्स्ट्रा देकर जल्दी चेकइन कर लिया...
हमने करीब 8:45 पर चेकइन किया और फ्रेश होकर रेडी हो लिए दर्शन यात्रा के लिए...

अब आइए आपको हम द्वारकापुरी लिए चलते हैं...

द्वारकाधीश मंदिर।।
द्वारकापुरी में हमने सबसे पहले रुख किया द्वारकाधीश मंदिर की ओर और दर्शन को लालायित हमारे पैर अपने आप तेजी से बढ़ रहे थे.. रास्ते मे हमने क्रीकलाश कुंड के दर्शन किये...

क्रिकलाश कुन्ड
फिर बढ़े द्वारकाधीश की ओर..
जैसे ही हमने द्वारकाधीश मंदिर की पताका देखी मुख अपने आप बोल उठे जय जय श्री कृष्णा.. राधे राधे.. मुरलीवाले की जय.. वृंदावन बिहारी लाल की जय... मंत्रमुग्ध हो गए जब हमने मंदिर देखा... फिर हमने चढ़ावा लिया और हम मन मे ही जयकारा लगाते हुए मंदिर के मुख्य द्वार पहुंचे तो पता चला मोबाइल इत्यादि अंदर लेकर जाना मना है.. अब फिर वापस राधे राधे करते हुए लॉकर के पास पहुचे और मोबाइल जमा किये... फिर चल दिये अपने कान्हा के दर्शन के लिए... अंदर एक लंबी कतार को पार करते हुए सांवरे सरकार के दर्शन प्राप्त किये.. वो अद्भुत दर्शन.. दर्शन मात्र से ही लगा मनमोहना ने हमें फिर से मोह लिया.. शब्दों में क्या बयां करें उस मोहन की बात बस यूँ समझिए धन्य हो गए हम दर्शन के साथ...........

सांवरे सरकार का मंदिर😘

गोमती तट और सुदामा सेतु-

वहाँ से दर्शन के बाद मंदिर के ठीक पीछे गोमती तट पर आए यहां गोमती तट का दृश्य भी मनोरम था... नीले आसमान के नीचे नीला पानी साथ ही कही कही आसमान में बादल भी थे.. छप्पन सीढ़ियों वाला वो गोमती तट जहां सभी स्नान कर रहे थे... कोई लंबी छलांग लगा रहा तो कोई खड़े-खड़े ही डुबकियाँ लगा रहा था.. किसी ने तट पर सिर्फ हाथ पांव धुले तो कोई दूर से खड़ा होकर इस मनोरम दृश्य को निहार रहा था... तट पर मछलियाँ भी अधिक थी जो झुंड में आकर मन मोह रही थी..  लोग मछलियों को दाने खिला रहे थे और वो मग्न होकर पूछें लहरा लहरा कर खा रही थी... हम भी उन्हीं लोगों के बीच इस दृश्य का आनंद उठा रहे थे.. हमे फोटोग्राफी पसंद है तो हम अपने फोटो लेने के एंगल को बना रहे थे.. अचानक पानी लहराता हुआ आया और मुझे हल्की छींटों से भिगोता हुआ वापस चला गया.. ठंढा एकदम शीतल जल और साथ ही साथ एकदम स्वक्ष नीला जल... अहा.. बहुत ही ठंढा.. और बहुत ही शीतल...
अब आपको बता दें कि यहीं से दिखता है सुदामा सेतु जिसपर जाने के लिए मात्रा 10 रुपये प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क है.. सुदामा सेतु भी बहुत अद्भुत था.. मैं मध्य में खड़े होकर गोमती तट और समुन्द्र दोनो को एक साथ निहार रहा था... लहरें एकदम मद्धम हवा के साथ पानी पर अलग अलग परत बना कर गुजरती हुई बहुत सुंदर लग रही थी... ये सब इतना सुंदर था कि मन कह रहा था यही बैठ जाएं लेकिन भूख काफी लग चुकी थी और हम फिर निकल लिए भोजन की खोज में.. वही मंदिर के ठीक पीछे प्रसाद भोजनालय था जिसे मंदिर के ट्रस्ट द्वारा संचालित किया जाता है जिसका समय सुबह 7 बजे से 1 बजे तक और शाम को 7 10 बजे तक था.. हमने वहां टोकन लिया और 20 रूपये में भरपेट खाना खाया.. हालांकि भोजन ठीक ठाक ही था और 20 रुपये में आप उम्मीद भी क्या कर सकते हैं... भोजन ठीक था पर व्यवस्था नही ठीक थी मंदिर द्वारा संचालित था तो साफ-सफाई की उम्मीद अधिक थी पर.. खैर.. यह विषय नही है.. आप कहीं और भी उत्तम भोजन का आनंद ले सकते हैं... अब यहां से हमें अभी अगला पड़ाव तय करना था जिसकी मान्यता बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है.. नागेश्वर ज्योतिर्लिंग...

गोमती तट का मनोरम दृश्य।।

गोमती तट से नज़र आता सुदामा सेतु
हमे भी देखिए फुल एक्शन मर हैं हम😉😜😛
गोमती तट

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग-

आइए आपको ले चलते हैं नागेश्वर ज्योतिर्लिंग जो कि द्वारकाधीश से करीब 17 किलोमीटर है.. 
हमने सुदामा सेतु से एक ऑटो वाले चाचा को 300 रुपये में बुक किया और हम निकल लिए नागेश्वर ज्योतिर्लिंग दारूकावन की ओर..
दारूकावन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की तरफ बढ़ते वक़्त का जो रास्ता था वह भी पूर्ण हरा भरा... 17 किलोमीटर एकदम हरी-भरी घास और खेतों में भी एकदम हरियाली.. बादलों ने सूर्य भगवान को अपने गिरफ्त में कर लिया था जिसके कारण छांव हो गयी थी और मौसम एकदम ठंढा था.. हरे भरे क्षेत्रों के मध्य ही काफी दूर से ही 125 फ़ीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा दिखाई देने लगी... उत्सुकता इतनी की बस अब ऑटो वाले भाई साहब उड़ा के ले चले.. जैसे ही हम नज़दीक पहुंचे मन और उत्सुक हो उठा था और गेट के अंदर प्रवेश करते ही वो भव्य और दिव्य भगवान शिव की प्रतिमा ने हमे गेट पर ही उतरने के लिए विवश कर दिया... हम ऑटो वाले भइया को वही रुकवा दिए और हमारी फोटोग्राफी सुरु.. और पैदल ही चल दिये मंदिर की तरफ.. हमने पहले प्रसाद लिया फिर वहाँ मंदिर के पास पहुचे और फिर महादेव के ज्योतिर्लिंग की तरफ बढ़े.. वहां भीड़ बहुत अधिक न होने के कारण हम आसानी से कतार में लगे रहे.. लोगों से हर हर महादेव के हुंकार भरवाते हुए पहुँचे ज्योतिर्लिंग के सामने और फिर क्या था मन और आत्मा दोनो एक साथ बोले हर हर महादेव शिव सम्भो.. महादेव महादेव का उच्चारण सुरु... और साथ ही महामृत्युंजय मंत्रोउच्चारण भी सुरु.. सम्पूर्ण दर्शन के बाद बाद हम लोग वहां से वापस मन्दिर के अंदर ही आकर बैठ गए... काफी देर तक जप करने के बाद हम वापस बाहर निकले और मंदिर के बाहर ही शिव परिवार मन्दिर भी है वहां दर्शन के बाद हम वहां से शनि भगवान के दर्शन करके निकले...
अब फिर से फोटोग्राफी का भूत सवार और महादेव के प्रतिमा के साथ फोटोग्राफी सुरु... अंततः फोटोग्राफी के बाद हम वहां से निकले और अगला पड़ाव था बेट-द्वारका...

दूर से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर और 125 फ़ीट ऊंची और 25 फ़ीट चौड़ी शिव प्रतिमा

थोड़ा नज़दीक से मंदिर और शिव प्रतिमा।


।।ॐ नमः शिवाय।।

ये रहा मैं सुंदर सुंदर बालक😉😜😄
शिव परिवार के साथ हम दो मित्र

हरे भरे रास्ते जिन्हें देखकर मन हरा भरा हो गया😍❤️

बेट द्वारका- 

अब हम नागेश्वर से निकले तो पहले होटल आये फिर प्रसाद रखें... और फिर से तैयार हुए पावडर और क्रीम लगाकर haha.. वहां से नजदीक ही सब्जी मंडी है वहां से बस मिलती है बेट द्वारका के लिए... हमने बस पकड़ी जिसका किराया 30 रुपये प्रति व्यक्ति था... निकले वहां से और रास्ते भर झूमते झूमते पहुंचे बन्दरगाह जहाँ से बोट यानी समुद्री नाव मिलती है.. नाव में सवार होकर हम निकले कान्हा जी के उस स्थान पर जहाँ कन्हैया जी रहते थे.. समुन्द्र में लगभग 15 मिनट का सफर एकदम आनंदित था... धूप अधिक थी पर लगी नही... मंदिर के लिए मुसाफिरों से खचाखच भरी बोट दूसरी तरफ बंदरगाह पर पहुंची... वहाँ उतरते ही हमने हमारी कलाकारी फोटोग्राफी सुरु कर दी.. कुछ मस्त मस्त फोटोज के बाद हम निकले संकरी गलियों से बेत-द्वारका जी के मंदिर की ओर.. मंदिर में प्रवेश करने पर पता चला कुछ पूजा अर्चना के कारण कुछ समय के लिए मंदिर बंद है...फिर हमने सोचा क्यूँ न किसी से बात की जाए तो मैं जानकारियां जुटाने के लिए प्रांगण में बैठे एक चाचा जी से पूछा.. चाचा जी यहां की मान्यता क्या है और क्यूँ यह जगह फेमस है.??? चाचा जी मुस्कुराए और बोलई बेटा आ गए पर पता नही है.?? मैने तुरंत ना में सिर हिलाया और चाचा जी मे छोटे में मुझे बताया कि- बेट-द्वारका ही वह जगह है, जहां भगवान कृष्ण ने अपने प्यारे भगत नरसी की हुण्डी भरी थी। मैंने पूछा हुंडी मतलब क्या होता है तो चाचा जी मुस्कुराते हुए चले गए.. अब मन मे हुंडी को लेकर सवाल चल ही रह था कि एक और बात पता चली की यहां हनुमान जी का टीला है बहुत अद्भुत मंदिर है.. अब हुंडी भूल मैं बजरंगबली के टीले की सोचने लगे और लोगों से पूछा तो पता चला कि बहुत भव्य मंदिर है दर्शन करके ही जाना... इन सब बातों के बीच भगवान के दर्शन सुरु हो गए थे... अब यहां पर कान्हा जी के मंदिर में बहुत सारे दर्शन करने को मिले सभी दर्शन करते करते समय काफी निकल गया फिर हम वहां से लौट आये और वापस द्वारका आकर दूसरे दिन दोपहर की ट्रेन से मुम्बई रवाना हो लिए।

बेतद्वारका से वापस आते वक्त बन्दरगाह से ली गयी तस्वीर

बंदरगाह जहाँ से बेतद्वारका जाया जाता है।

बेतद्वारका मुख्य द्वार।

ये थी मेरी यात्रा।।
अब कुछ जरूरी जानकारियां..

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

वायु मार्ग- सोमनाथ से 55 किलोमीटर स्थित केशोड नामक स्थान से
सीधे मुंबई के लिए वायुसेवा है। केशोड और सोमनाथ के बीच बस व
टैक्सी सेवा भी है। 
रेल मार्ग- सोमनाथ के सबसे समीप वेरावल रेलवे स्टेशन है, जो वहां से मात्र सात किलोमीटर दूरी पर स्थित है। 
मुम्बई से सोमनाथ के लिए डायरेक्ट सौराष्ट्र एक्सप्रेस ट्रैन है जो रात्रि 10 बजे मुम्बई से रवाना होती है और दूसरे दिन लगभग 18 घंटे के सफर के बाद आपको शाम 4 बजे वेरावल पहुंचाती है.. मुम्बई से वेरावल का किराया लगभग स्लिपर 500 और 3AC 1250 रुपये है।
अहमदाबाद व गुजरात के अन्य स्थानों का सीधा संपर्क भी है।
यहां रुकने की उत्तम व्यवस्था है, यहां AC NON-AC होटल्स आपको कम से कम 800 से 1000 रुपये में डबल बेड मिल जाते हैं।

सोमनाथ में कहाँ कहाँ जाएं.???

आप यहाँ कई तीर्थस्थलों पर जा सकते हैं जिनमे से 
मुख्य तीर्थस्तथल ये है👇
1- सोमनाथ मंदिर
2- त्रिवेणी घाट
3- पंच पांडव गुफा
4- लक्ष्मी नारायण
5- गीता मंदिर
6- परशुराम मंदिर
7- सूरज मंदिर
8- देहोत्सर्ग तीर्थ

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और द्वारकाधीश..

सोमनाथ दर्शन सम्पन्न करके के बाद आप वहां से डायरेक्ट
कैब या ट्रैन से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रस्थान कर सकते हैं।

रेल मार्ग- वेरावल से द्वारका के लिए डायरेक्ट ट्रैन है, आप वेरावल
से अगर रात की ट्रेन लेते हैं तो आप सुबह-सुबह द्वारका पहुँच जाएंगे। (विवरण ऊपर लिखा हुआ है)

आप चाहें तो द्वारका से पूरे दिन के लिए कैब बुक करके आप नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और साथ ही आप और भी कई पुण्य स्थल पर जा सकते हैं। पूरे दिन के ट्रिप के लिए एक कैब लगभग 1500 से 2000 रुपये में बुक होती है।
अगर आप कम से कम पैसे में जाना चाहते हैं तो आप दोपहर 2 बजे से सब्जी मंडी के पास से बस सर्विस ले सकते हैं, बस सर्विस में आपसे 100 रुपये प्रति व्यक्ति किराया लेते हैं और उसी में आपको निम्लिखित स्थानों के दर्शन कराते हैं। यह बस सर्विस आपको 2 बजे से सुरु होकर शाम 7 बजे वापस उसी स्थान पर छोड़ती हैं।


द्वारका के कुछ मुख्य तीर्थस्थल

1- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
2- बेट-द्वारका
3- द्वारकाधीश मंदिर
4- गोपी तालाब
5- रुक्मणि मंदिर


फिर मिलेंगे अगले यात्रा में🙏

।।जय शिव संभू जय श्री कृष्णा।।

Monday, August 12, 2019

कैसे पहुंचे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और द्वारकाधीश ??

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

वायु मार्ग- सोमनाथ से 55 किलोमीटर स्थित केशोड नामक स्थान से
सीधे मुंबई के लिए वायुसेवा है। केशोड और सोमनाथ के बीच बस व
टैक्सी सेवा भी है। 
रेल मार्ग- सोमनाथ के सबसे समीप वेरावल रेलवे स्टेशन है, जो वहां से मात्र सात किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहाँ से अहमदाबाद व गुजरात के अन्य स्थानों का सीधा संपर्क भी है। 

सोमनाथ में कहाँ कहाँ जाएं.???
आप यहाँ कई तीर्थस्थलों पर जा सकते हैं जिनमे से 
मुख्य तीर्थस्तथल ये है👇
1- सोमनाथ मंदिर
2- त्रिवेणी घाट
3- पंच पांडव गुफा
4- लक्ष्मी नारायण
5- गीता मंदिर
6- परशुराम मंदिर
7- सूरज मंदिर
8- देहोत्सर्ग तीर्थ


महादेव की ध्यान मुद्रा में 125 फ़ीट ऊंची और 25 फ़ीट चौड़ी प्रतिमा

दूर से मंदिर 


नागेश्वर ज्योतिर्लिंग और द्वारकाधीश..

सोमनाथ दर्शन सम्पन्न करके के बाद आप वहां से डायरेक्ट
कैब या ट्रैन से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रस्थान कर सकते हैं।

रेल मार्ग- वेरावल से द्वारका के लिए डायरेक्ट ट्रैन है, आप वेरावल
से अगर रात की ट्रेन लेते हैं तो आप सुबह-सुबह द्वारका पहुँच जाएंगे।

द्वारका से पूरे दिन के लिए कैब बुक करके आप नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
और साथ ही आप और भी कई पुण्य स्थल पर जा सकते हैं।

द्वारका से नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की दूरी मात्र 16 किलोमीटर है।

द्वारका के कुछ मुख्य तीर्थस्थल

1- नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
2- बेट-द्वारका
3- द्वारकाधीश मंदिर
4- गोपी तालाब
5- रुक्मणि मंदिर

बेट द्वारका मुख्य गेट


बेट-द्वारका

बेट द्वारका- यहां जाने के लिए आपको समुद्री नाव में बैठ कर जाना पड़ता है, करीब 15 से 20 मिनट का रास्ता है। यह भगवान श्रीकृष्ण का गृह स्थल है जहां से आपको प्रसाद में चावल और अन्य कुछ अन्न मिलेंगे जिनकी मान्यता है कि आप इस अन्न के प्रसाद को अपने अन्न में मिलाकर रखने से आपके घर मे माता अन्नपूर्णा का वास सदैव के लिए रहता है।
द्वारका के मुख्य शहर से लगभग 30 किमी के आसपास स्थित एक द्वीप है। इस द्वीप को बेटे शंखोधर के नाम से भी जाना जाता है, और यह एक समृद्ध बंदरगाह है। यह सफेद रेत, समुद्र तट और प्रवाल भित्तियों से घिरा हुआ है। यह थोड़ा समुद्र के अंदर है, इस आइलैंड पर कुछ दुर्लभ और सुंदर मंदिर है, वहां एक संकीर्ण सड़क है जो इन मंदिरों की ओर जात है जो स्थानीय शिल्प, मूर्तियों, कैसेट, नारियल और समुद्री मछली बेचने वाले विक्रेताओं द्वारा भीड़ भी रहती है।
द्वीप पर स्थित मुख्य मंदिर भगवान श्रीकृष्ण का है, जो एक समय भगवान श्रीकृष्ण और उनके परिवार का निवास स्थल था।

बेट द्वारका के लिए जाने वाला बंदरगाह

द्वारकाधीश मंदिर




Monday, July 29, 2019

कैसे पहुँचे चारधाम और किन बातों का रखें ध्यान




यमुनोत्री है पहला पड़ाव






यमुनोत्री को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव कहा जाता है। यहां यमुना का पहाड़ी शैली में बना मनमोहक मंदिर है और मंदिर के पास ही खौलते पानी का स्रोत है जो तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का केंद्र है। यमुनोत्री पहुंचने के लिए आप दिल्ली से देहरादून या ऋषिकेश तक हवाई यात्रा या रेल यात्रा से पहुंच सकते हैं। यहां से आगे सड़क मार्ग और आखिरी कुछ किलोमीटर पैदल चलकर यमुनोत्री पहुंच सकते हैं।










गंगोत्री है दूसरा पड़ाव

चारधाम यात्रा का दूसरा पड़ाव गंगोत्री है। यमुनोत्री के दर्शन कर तीर्थ यात्री गंगोत्री में गंगा माता की पूजा के लिए पहुंचते हैं। गंगा का प्राकृतिक स्रोत गोमुख ग्लेश्यिर गंगोत्री से 18 किलोमीटर दूर है। यमुनोत्री से गंगोत्री की सड़क मार्ग से दूरी 219 किलोमीटर है जबकि ऋषिकेश से गंगोत्री की दूरी 265 किलोमीटर है और वहां से वाहन से सीधे पहुंचा जा सकता है।


कैसे पहुँचे केदारनाथ.?



चारधाम यात्रा का तीसरा पड़ाव केदारनाथ धाम है जो उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में आता है। ऋषिकेश से गौरीकुण्ड की दूरी 76 किलोमीटर है और यहां से 18 किलोमीटर की दूरी तय करके केदारनाथ पहुंच सकते हैं। केदारनाथ और लिंचैली के बीच 4 मीटर चौड़ी सीमेंटेड सड़क बना दी गई है जिससे श्रद्धालु आसानी से केदारनाथ पहुंच सकते हैं। 



कैसे पहुँचे बद्रीनाथ.?


बद्रीनाथधाम तक गाड़ियां जाती हैं, इसलिए यहां मौसम अनुकूल होने पर पैदल नहीं जाना पड़ता। बद्रीनाथ को बैकुण्ठ धाम भी कहा जाता है। यहां पहुंचने के लिए ऋषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली और गोविन्दघाट होते हुए पहुंचा जा सकता है।






कई और खूबसूरत मंदिर 

केदारनाथ और बद्रीनाथ के बीच कई और मंदिर भी हैं जिनके दर्शन तीर्थ यात्री कर सकते हैं। इनमें भविष्यबद्री मंदिर, नृसिंह मंदिर, बासुदेव मंदिर, जोशीमठ जैसे मंदिर बद्रीनाथ यात्रा मार्ग के आसपास हैं जबकि केदारनाथ मार्ग पर विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी, मदमहेश्वर मंदिर, महाकाली मंदिर कालीमठ, नारायण मंदिर, तुंगनाथ मंदिर शामिल है। इसके अलावा 5 प्रयागों में से रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग केदार मार्ग पर और कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर पड़ते हैं। चारधाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालु और तीर्थ यात्री इन मंदिरों में भी जाते हैं।



कब जाएं?

वैसे तो चारधाम यात्रा हर साल अप्रैल या मई के महीने में शुरू होती है और अक्टूबर-नवंबर में खत्म हो जाती है। लेकिन सितंबर का महीना इस यात्रा का पीक सीजन होता है क्योंकि जून से अगस्त के बीच इस इलाके में भारी बारिश होती है, जिसकी वजह से तीर्थ यात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। सितंबर चारधाम यात्रा पर जाने का सबसे बेस्ट समय है क्योंकि बारिश के बाद पूरी घाटी धुली हुई और फ्रेश हो जाती है। चारों तरफ हरियाली नजर आने लगती है और यहां की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है।


यात्रा के दौरान इन चीजों का रखें ध्यान 
- सिर्फ चारधाम यात्रा ही नहीं बल्कि किसी भी यात्रा के दौरान आपको अपनी जरूरी दवाइयां हमेशा साथ रखनी चाहिए।
- इसके अलावा छोटी-मोटी सामान्य परेशानियों जैसे- पेट दर्द, उल्टी, सिरदर्द, बुखार की दवा के अलावा क्रीम और पेनरिलीफ स्प्रे भी साथ रखना चाहिए।
- यात्रा के दौरान गर्म और ऊनी कपड़े साथ रखें क्योंकि इस क्षेत्र का मौसम हमेशा ठंडा रहता है और ऊंचाई पर तो ठंड ज्यादा बढ़ जाती है।
- इसके अलावा एक अच्छा टॉर्च भी साथ जरूर रखें।
- हो सके तो चारधाम की यात्रा अकेले करने की बजाए दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ करें क्योंकि रूट चैलेंजिंग होने की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

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Tuesday, January 8, 2019

अपना साथी कौन है..?? अपनत्व का शीशा कैसा..??


अपना साथी कौन है.? अपनत्व का शीशा कैसा.?


समय धीरे धीरे बीतता है.. लोग अपने बनते हैं.. 
फिर लोग अपने होकर भी बेगाने की तरह रहते है.. 
ज़िन्दगी के इस कशमकश को कैसे कोई समझे और 
कैसे संभाले .??? यहाँ अपनत्व की परिभाषा रोज
अलग अलग लाइनों में लिखी जाती है.. अकेलेपन 
में खुद को खोजना और बाहर की ढोंगी दुनिया मे 
सबके साथ अपने आपको पाना और जब जरूरत
हो तो सबके रास्ते अपने से अलग देखना क्या ये
अकेलापन ही अपना साथी है..??? 
या कोई और है अपना साथी...??? 
कई बार आप बहुत खुश होते हैं और दिखावे के
आईने में आप खोते जाते हैं... पर जब आपको 
पता चले कि वो बस आईना था तब....????
तब फिर मन खुद को कोसता है और खुद को ही 
अपना साथी मानता है... तब महसूस होता है कि 
अपना सच्चा साथी वो अकेलापन  ही है...
खुद को साथी समझो तो आपको किसी से कोई
उम्मीद नही रहेगी.. कई बार हम खुद से ज्यादा
किसी और पर विश्वास कर लेते हैं... और फिर हम
बहुत उम्मीदें करने लगते है.. और बस किसी एक 
बात से ही अपने अपनत्व का शीशा  धड़ाम से टूट
जाता है... शीशे के बिखराव में आप फिर खुद को
खोजते हैं और हर बिखरे हुए टुकड़ों में आप खुद
को ही पाते हैं... और अंततः आपको फिर विश्वाश
होता है कि अपना साथी तो बस अकेलापन ही है।