कहते हैं रिश्ते ऊपर वाला बनाता है
ऐसा ही मेरा एक रिश्ता है जो खून का नहीं पर आत्मीय रिश्ता है... जो मेरा अपना है.. जिसे कभी खोने की सोच से ही सहम सा जाता हूँ... और चारो दिशाओं में अँधेरा सा छाने लगता है.. मन उदास हो जाता है... और आँखों में एक बेरंग गंगाजल उफान लेकर आता है और अंतरआत्मा को कचोटता हुआ आँखों को भिगो देता है...
ये संसार का सबसे पवित्र रिश्ता "भाई-बहन" का है...
जिनकी कुछ पुरानी यादें एक अद्भुत सी ख़ुशी दे देती हैं.........
जो जिद करके अपनी बात सुना जाती थी
"भय्यू भय्यू भय्यू भय्यू सुनो पहले मेरी बात" और मन तुरंत एकाग्र होकर बाते सुनने में जुट जाता था....
वो आवाज जो एकदम मीठी सी मुस्कान लिए कहती थी "भय्यू सुन लो plz" और पल भर में कई नाम दे देती थी...
जो मन से मन के तार को जोड़े रहती थी...
जिसका जिक्र होते ही भरोषा हो जाता था कि बस अब कॉल आ जाएगा...
जो बिना रुके बिना थके अपने भाई की खुशियों के लिए लगातार मन्नतें मांगनी सुरु कर देती थी..
भगवान् भी उन मिन्नतों के सामने माथा टेक देता था जो अटूट और अमिट सा प्रेम दीखता था वो पता नहीं क्यूँ खोया सा लगने लगा है पता नहीं क्यूँ और किसकी नज़र लग गयी है उस प्रेम को..........
अब वक़्त का इस तरह करवट ले
लेना भी मन को बहुत दुखी करता है...
समझ नहीं आता कि आखिर
क्या गुनाह है????
और कैसी सज़ा है?????
और क्यूँ?????
जो ऐसे अपनों से दूर कर देता है...
हे ईश्वर तू मुझे शक्ति दे जिससे मैं
उन यादों में अपने आपको ना टटोलूं...
मैं इस समय के चक्र को सह सकूँ...
मैं उबर जाऊँ इस सदमे से जो मुझे
मौत के मुह में धकेल रहा है...
मैं लड़ सकूँ अपने आपसे...
मैं सह सकूँ और मान लूँ कि जो था
वो अब नहीं है...
मैं समझ जाऊं जो कोई मुझे समझाना चाहे...
मैं रोक लूँ खुद के तकिये को अपने इन आंसुओं से भिगो देने से...
मैं संभल जाऊं मुझे ताकत दे ईश्वर...
मेरा साथ दे दाता.. मेरा साथ दे....।।।।।।।