Wednesday, April 27, 2016

यादें, स्मृति..


अपने बीते कल की ओर मुड़कर देखने की चाह हर मन में होती है ।
तभी तो यादें हमारे ह्रदय में स्थान पातीं हैं । जीवन का सहारा
बनती हैं। खट्टी हों या मीठी स्मृतियाँ सदा अपनी सी लगती
हैं । बैठे बैठे कभी मन ही जीवन के संस्मरण दोहराने लगता है तो
कभी मस्तिष्क जान बूझकर उन यादों की गहराई तक ले जाता है
जो पीछे छूट गयीं हैं । जाने ह्रदय के कौन से कोने में इतना स्थान
खली पड़ा रहता है हर स्मृति को स्थान मिल जाता है । कितने
ही चरित्र और घटनाएं हमारे भीतर जीवंत बनी रहती हैं । कभी
कचोटती हैं तो कभी मुस्कुराहटें बिखेर देती हैं । स्मृतियाँ यह
सिखाती समझाती हैं कि जीवन आगे बढ़ता है पर पीछे कुछ नहीं
छूटता ।
स्मृतियाँ चाहे अनचाहे मन की चौखट पर दस्तक दे ही देती हैं ।
अधिकार जताती हैं और हमारे समय और ऊर्जा को लेकर स्वयं
को पोषित करती हैं । इन्हें तो हमारा दखल भी बर्दाश्त नहीं ।
जितना उपेक्षित करो उतनी ही दृढ़ता मन के द्वार खटखटाती
हैं । यादों के आगे मन की विवशता भी देखते ही बनती है । जब
चाहकर भी इनकी अवहेलना नहीं की जा सकती । बिना झाड़ -
पौंछ ही ये नई सी रहती हैं, इन्हें विस्मृत किया ही नहीं जा
सकता ।
शाम ढले अँधेरे में बैठे बैठे यूँ ही किसी का मन बीते दिनों को
यात्रा पर निकल पड़ता है तो कोई यात्रा करते हुए जीवन की
स्मृतियों में डूब जाता है । कभी हकीकत का कड़वा घूँट और
कभी कल्पना से भी परे एक मिठास । स्मृतियाँ कुछ विशिष्ट
होती हैं । हमारी सफलता असफलता के साथा ही दृढ़ता और
समझौते सभी कुछ सहेजे यादें पुरानी नहीं पड़तीं । कभी कभी
लगता है जीवन जिस गति से आगे बढ़ता है बीता समय उसके साथ
इतना तालमेल कैसे बनाये रखता है । कितने ही दर्द कितनी ही
पीड़ाएं जाने कल ही बात हों । सदा जीवंत रूप में साथ चलती हैं
। कितने ही सुख, कितनी ही खुशियां मन को घेरे रहती हैं ।
स्मृतियाँ दुःख को समेटे हों या सुख को । एक बात हमेशा देखने
में आती है कि इन्हें सहेजना हमें एक सुखद अनुभूति देता है ।
जीवन का ऐसा बहुत कुछ जो देखा-जिया हो, हम स्वयं से छूटने नहीं
देना चाहते । चाहे उसमे पीड़ा हो या प्रेम । स्मृतियों के रूप में
बीते जीवन को जीना और याद करना हर मन को सुहाता है ।
स्मृतियों के सागर में उठते गिरते रहने का भी अपना आनंद है ।
तभी तो कभी यूँ बैठकर यादों का पिटारा खोल अपनों से
बतियाना कितना आनंददायी लगता है ।
स्मृतियाँ प्राणवान होती हैं । जीवंत और अनमोल। हमें जीना-
सोचना सिखाती हैं । हमारे अपने ही जीवन को सम्बोधित
यादें बीते कल का प्रतिबिम्ब बन हर क्षण हमारे सामने रहतीं हैं ।
स्मृतियाँ बारम्बार यह आभास करवाती हैं कि न तो इन्हें
भुलाया जा सकता है और न ही बिसराना कभी सम्भव हो
पाता है । ये तो साथ चलती हैं जीवन भर । तभी तो स्मृतियों के
ये बिखरे सूत्र हमें सदैव बांध कर रखते हैं, अपने आप से । सम्भवतः
इसीलिए हम उन्हें कभी विदा नहीं कर पाते और ये स्वयं तो
विदा लेना ही नहीं चाहतीं ।