Thursday, April 24, 2014

जब दुनिया मेरे लिए बस स्कूल का रास्ता था..

जब दुनिया मेरे लिए बस स्कूल का रास्ता था..
वहीँ एक बच्चा स्कूल जाने को बेहद तरसता था..

जब अपने खिलौने तोड़ मई नए खिलौने के जिद किया करता था..
वही एक बच्चा अपना परिवार चलाने की लिए मिटटी के खिलौने बनाया करता था..

जब मै अपने छोटे छोटे कामो के लिए माँ पे निर्भर होता था..
वही एक बच्चा दिन भर काम कर थक के रात भर रोता था..

मैदान के खेल जहा हमें थकाते थे..
वहीँ उनके मालिक ना जाने उनको कितना भगाते थे..

आज प्रण लेता हूँ बाल मजदूरी के खिलाफ उठाऊंगा अपनी आवाज..
और कुछ ऐसा कर दिखाऊंगा की इश्वर को भी हो मुझपे नाज..

राज

Saturday, April 19, 2014

"पिता" और "माँ"


"............पिता................."

पिता- घर का आधार है,
पिता-कभी डांट तो कभी दुलार है ।
पिता- बच्चों के सपनों की आशा है,
पिता-बचपन के खिलौनों की अभिलाषा है ।
पिता-हैं तो सर पर आसमान है,
पिता-न हों तो ये गुलशन वीरान है ।
पिता- से घर का मान सम्मान है,
पिता-हैं तो जान है जहान है।
पिता-हमारे लिए संस्कारों का खजाना है,
पिता-गम में ख़ुशी का ठिकाना है ।
पिता-हार में जीत की आस है,
पिता-सफलता का पूर्ण विश्वास है ।
पिता- जीवन रुपी पेंड का तना है,
पिता- न हो तो अँधेरा घना है ।

"............."माँ"............."

माँ- दुःख में सुख का एहसास है,
माँ - हरपल मेरे आस पास है ।
माँ- घर की आत्मा है,
माँ- साक्षात् परमात्मा है ।
माँ- आरती, अज़ान है,
माँ- गीता और कुरआन है ।
माँ- ठण्ड में गुनगुनी धूप है,
माँ- उस रब का ही एक रूप है ।
माँ- तपती धूप में साया है,
माँ- आदि शक्ति महामाया है ।
माँ- जीवन में प्रकाश है,
माँ- निराशा में आस है ।
माँ- महीनों में सावन है,
माँ- गंगा सी पावन है ।
माँ- वृक्षों में पीपल है,
माँ- फलों में श्रीफल है ।
माँ- देवियों में गायत्री है,
माँ- मनुज देह में सावित्री है ।
माँ- ईश् वंदना का गायन है,
माँ- चलती फिरती रामायन है ।
माँ- रत्नों की माला है,
माँ- अँधेरे में उजाला है,
माँ- बंदन और रोली है,
माँ- रक्षासूत्र की मौली है ।
माँ- ममता का प्याला है,
माँ- शीत में दुशाला है ।
माँ- गुड सी मीठी बोली है,
माँ- ईद, दिवाली, होली है ।
माँ- इस जहाँ में हमें लाई है,
माँ- की याद हमें अति की आई है ।
माँ- मैरी, फातिमा और दुर्गा माई है,
माँ- ब्रह्माण्ड के कण कण में समाई है ।

राज उपाध्याय

Wednesday, April 16, 2014

माँ तो सिर्फ माँ होती है

जब आँख खुलीं तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था
उसका नन्हा सा अंचल मुझको भूमण्डल सा प्यार था

उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था
उसके स्तन की एक बूँद से मुझको जीवन मिलता था....

हाथो से बालो को नोचा पैरो से खूब प्रहार किया
फिर भी उस माँ ने पुचकारा मुझको जी भर के प्यार किया

मै उसका राजा बेटा था वो आँख का तार कहती थी
मै बनु बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी

उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था
मेरी नादानी को निज अंतर में सदा सहेजा था

मेरे सारे प्रश्नो का वो फ़ौरन जवाब बन जाती थी
मेरी राहों के काटें चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी

मै बड़ा हुआ तो कॉलेज से एक रोग प्यार का ले आया
जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया

शादी की पति से बाप बना अपने रिश्तों में झूल गया
अब करवा चौथ मनाता हूँ माँ की ममता को भूल गया

हम भूल गए उसकी ममता मेरे जीवन की थाती थी
हम भूल गए अपना जीवन वो अमृत वाली छाती थी

हम भूल गए वो खुद भूखी रहकर के हमें खिलाती थी
हमको सुख बिस्तर देकर खुद गीले में सो जाती थी

हम भूल गए उसने ही होठो को भाषा सिखलाई थी
मेरी नींदों के लिए रात भर उसने लोरी गायी थी

हम भूल गए उसने हर गलती पर डांटा समझाया था
बच जाऊं बुरी नजर से काल टीका सदा लगाया था

हम बड़े हुए तो ममता वाले सारे बंधन तोड़ आये
बंगले में कुत्ते पाल लिए माँ को बृद्धा आश्रम छोड़ आये

माँ के सपनो का महल गिराकर कंकड़-कंकड़ बीन लिए
खुदगर्जी में आकर उसके सुहाग के आभूषण तक चीन लिए

हम माँ कोघर के बंटवारे की अभिलाषा कर ले आये
उसको पावन मंदिर से गाली की भाषा पर ले आये

माँ की ममता को देख मौत भी आगे से हट जाती है
गर माँ अपमानित होती धरती की छाती फैट जाती है

घर को पूरा जीवन देकर बेचारी माँ क्या पाती है
रुख सुख खा लेती है पानी पीकर सो जाती है

जो माँ जैसी देवी घर के मंदिर में नहीं रख सकते हैं
वो लाखो पुण्य भले कर ले इंसान नहीं बन सकते हैं

माँ जिसको भी जल दे दे वो पौधा संदल बन जाता है
माँ के चरणो को छू कर पानी गंगाजल बन जाता है

माँ के आँचल ने युगों युगों से भगवानो को पाला है
माँ के चरणो में जन्नत है गिरिजाघर और शिवाला है

हिमगिरि जैसी ऊंचाई है सागर जैसी गहराई है
दुनिया में जितनी खूशबू है माँ के आँचल से आई है

माँ कबीरा के साखी जैसी माँ तुलसी की चौपाई है
मीरा बाई की पदावली खुशरो की अमर रुबाई है

माँ आँगन के तुलसी जैसी पावन बरगद की छाया है
माँ वेद ऋचाओँ की गरिमा माँ महाकाव्य की काया है

माँ मानसरोवर ममता का माँ गोमुख की ऊंचाई है
माँ परिवारो का संगम है माँ रिस्तो की गहराई है

माँ हरी दूब है धरती की माँ केशरवाली क्यारी है
माँ की उपमा केवल माँ है माँ हर घर की पुलवारी है

सातो सुर नर्तन करते जब कोई माँ लोरी गाती है
माँ जिस रोटी को छू लेती है वो रोटी प्रसाद बन जाती है

माँ हसती है तो जर्रा जर्रा धरती का मुस्काता है
देखो तो दूर शिखर अम्बाज धरती को शीश झुकाता है

माना मेरे घर की दीवारो में चंदा सी सूरत है
लेकिन मन के इस मंदिर में केवल माँ की मूरत है

माँ सर्श्वती दुर्गा अनसुईया मरियम सीता है
माँ पावनता में रामचरित भगवत गीता है

अब माँ की हर बात मुझे वरदान से बढ़कर लगती है
हे माँ तेरी सूरत मुझको भगवान से बढ़कर लगती है

सारे तीरथ के पुण्य जहाँ मई उन चरणो में लेता हूँ
जिनके कोई संतान नहीं मई उन माओं का बेटा हूँ

हर घर में माँ की पूजा हो ऐसा संकल्प उठाता हूँ
मै दुनिया की हर माँ के चरणो में ये शीश झुकाता हूँ